GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 41 - उत्थानिका अर्थ
From जैनकोष
पूर्व में पृथक्-पृथक् श्लोकों के द्वारा सम्यग्दर्शन का जो फल कहा है उसे अब दर्शनाधिकार की समाप्ति के समय संग्रहरूप से उपसंहार करते हुए कहते हैं-
पूर्व में पृथक्-पृथक् श्लोकों के द्वारा सम्यग्दर्शन का जो फल कहा है उसे अब दर्शनाधिकार की समाप्ति के समय संग्रहरूप से उपसंहार करते हुए कहते हैं-