अप्रशस्त: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/28/445</span> <p class="SanskritText">अप्रशस्तमपुण्यास्रवकारणत्वात्।</p> | |||
<p class=" | <p class="HindiText">= जो पापास्रव का कारण है, वह (ध्यान) अप्रशस्त है।</p> | ||
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Latest revision as of 11:56, 25 December 2022
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 7/14/352/7
प्राणिपीडाकर यत्तदप्रशस्तम्।
= जिस से प्राणियों को पीड़ा होती है, उसे (ऐसे कार्य को) अप्रशस्त कहते हैं।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/28/445
अप्रशस्तमपुण्यास्रवकारणत्वात्।
= जो पापास्रव का कारण है, वह (ध्यान) अप्रशस्त है।