अप्रशस्तध्यान
From जैनकोष
अशुभ भावों से युक्त दुर्ध्यान । यह अति और रौद्र ध्यान के भेद से दो प्रकार का होता है । यह संसारवर्धक है, इसीलिए हेय है । महापुराण 21.27-29
अशुभ भावों से युक्त दुर्ध्यान । यह अति और रौद्र ध्यान के भेद से दो प्रकार का होता है । यह संसारवर्धक है, इसीलिए हेय है । महापुराण 21.27-29