अप्राप्यकारी: Difference between revisions
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अप्राप्यकारी | <p class="HindiText"><strong> इंद्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपने का निर्देश</strong></p> | ||
[[Category:अ]] | <span class="GRef">पंचसंग्रह/प्राकृत 1/68</span> <p class="PrakritText">पुट्ठं सुणेइ सद्दं अपुट्ठं पुण वि पस्सदे रूवं। फासं रसं च गंधं बद्धं पुट्ठं वियाणेइ ।68।</p> | ||
<p class="HindiText">= श्रोत्रेंद्रिय स्पृष्ट शब्द को सुनती है। चक्षुरिंद्रिय अस्पृष्ट रूप को देखती है। स्पर्शनेंद्रिय रसनेंद्रिय और घ्राणेंद्रिय क्रमशः बद्ध और स्पृष्ट, स्पर्श, रस और गंध को जानती हैं ।68।</p> | |||
<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि 1/19/118 पर उद्धृत</span> <p class="PrakritText">"पुट्ठं" सुणेदि सद्दं अपुट्ठं चेव पस्सदे रूअं गंधं रसं च फासं पुट्ठमपुट्ठं वियाणादि।</p> | |||
<p class="HindiText">= श्रोत्र स्पृष्ट शब्द को सुनता है और अस्पृष्ट शब्द को भी सुनता है, नेत्र अस्पृष्ट रूप को ही देखता है। तथा घ्राण रसना और स्पर्शन इंद्रियाँ क्रम से स्पृष्ट और अस्पृष्ट गंध, रस और स्पर्श को जानती हैं।</p> | |||
<span class="GRef">धवला 13/5,5,27/225/13</span> <p class="PrakritText"> सव्वेसु इंदिएसु अपत्तत्थग्गहणसत्तिसंभावादो।</p> | |||
<p class="HindiText">= सभी इंद्रियों में अप्राप्त ग्रहण की शक्ति का पाया जाना संभव है।</p> | |||
<p class="HindiText">अप्राप्यकारी इंद्रिय- विस्तार के लिये देखें [[ इंद्रिय#2 | इंद्रिय - 2]]।</p> | |||
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Latest revision as of 12:38, 25 December 2022
इंद्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपने का निर्देश
पंचसंग्रह/प्राकृत 1/68
पुट्ठं सुणेइ सद्दं अपुट्ठं पुण वि पस्सदे रूवं। फासं रसं च गंधं बद्धं पुट्ठं वियाणेइ ।68।
= श्रोत्रेंद्रिय स्पृष्ट शब्द को सुनती है। चक्षुरिंद्रिय अस्पृष्ट रूप को देखती है। स्पर्शनेंद्रिय रसनेंद्रिय और घ्राणेंद्रिय क्रमशः बद्ध और स्पृष्ट, स्पर्श, रस और गंध को जानती हैं ।68।
सर्वार्थसिद्धि 1/19/118 पर उद्धृत
"पुट्ठं" सुणेदि सद्दं अपुट्ठं चेव पस्सदे रूअं गंधं रसं च फासं पुट्ठमपुट्ठं वियाणादि।
= श्रोत्र स्पृष्ट शब्द को सुनता है और अस्पृष्ट शब्द को भी सुनता है, नेत्र अस्पृष्ट रूप को ही देखता है। तथा घ्राण रसना और स्पर्शन इंद्रियाँ क्रम से स्पृष्ट और अस्पृष्ट गंध, रस और स्पर्श को जानती हैं।
धवला 13/5,5,27/225/13
सव्वेसु इंदिएसु अपत्तत्थग्गहणसत्तिसंभावादो।
= सभी इंद्रियों में अप्राप्त ग्रहण की शक्ति का पाया जाना संभव है।
अप्राप्यकारी इंद्रिय- विस्तार के लिये देखें इंद्रिय - 2।