अप्रियवाक्
From जैनकोष
भगवती आराधना/830-832 कक्कस्सवयणं णिठ्टुरवयणं पेसुण्णहासवयणं च। जं किंचि विप्पलावं कहिंद्रवयणं समासेण।830। जत्तो पाणवघादी दोसा जायति सावज्जवयणं च। अविचारित्ता थेणं थेणत्ति जहेवमादीयं।831। परुसं कडुयं वयणं वेरं कलहं च जं भयं कुणइ। उत्तासणं च हीलणमप्पियवयणं समासेण।832। = कर्कश-वचन, निष्ठुर भाषण, पैशुन्य के वचन, उपहास का वचन, जो कुछ भी बड़बड़ करना, ये सब संक्षेप से गर्हित वचन हैं।830। [छेदन-भेदन आदि के ( पुरुषार्थ-सिद्ध्युपाय ) जिन वचनों से प्राणिवध आदि दोष उत्पन्न हों अथवा बिना विचारे बोले गये, प्राणियों की हिंसा के कारणभूत वचन सावद्य वचन हैं। जैसे−(इस सड़े सरोवर में) इस भैंस को पानी पिलाओ।831। परुष वचन जैसे - तू दुष्ट है, कटु वचन, वैर उत्पन्न करने वाले वचन, कलहकारी वचन, भयकारी या त्रासकारी वचन, दूसरों की अवज्ञाकारी होलन वचन तथा अप्रिय वचन संक्षेप से असत्य वचन हैं। पुरुषार्थ-सिद्ध्युपाय/96-98 ।
देखें वचन ।