अवस्थित अवधिज्ञान: Difference between revisions
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<p class="HindiText">कोई अवधिज्ञान सम्यग्दर्शनादि गुणों के समानरूप से स्थिर रहने के कारण जितने परिमाण में उत्पन्न होता है उतना ही बना रहता है। पर्याय के नाश होने तक या केवलज्ञान के उत्पन्न होने तक शरीर में स्थिर मस्सा आदि चिह्नों के समान न घटता है न बढ़ता है, उसे अवस्थित अवधिज्ञान कहते हैं। देखें [[ अवधिज्ञान ]]।</p> | |||
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कोई अवधिज्ञान सम्यग्दर्शनादि गुणों के समानरूप से स्थिर रहने के कारण जितने परिमाण में उत्पन्न होता है उतना ही बना रहता है। पर्याय के नाश होने तक या केवलज्ञान के उत्पन्न होने तक शरीर में स्थिर मस्सा आदि चिह्नों के समान न घटता है न बढ़ता है, उसे अवस्थित अवधिज्ञान कहते हैं। देखें अवधिज्ञान ।