अवस्थित अवधिज्ञान
From जैनकोष
कोई अवधिज्ञान सम्यग्दर्शनादि गुणों के समानरूप से स्थिर रहने के कारण जितने परिमाण में उत्पन्न होता है उतना ही बना रहता है। पर्याय के नाश होने तक या केवलज्ञान के उत्पन्न होने तक शरीर में स्थिर मस्सा आदि चिह्नों के समान न घटता है न बढ़ता है, उसे अवस्थित अवधिज्ञान कहते हैं। देखें अवधिज्ञान ।