आगम नय: Difference between revisions
From जैनकोष
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< | <p class="HindiText"> 1. अर्हंत प्रणीत भेद-रत्नत्रय-प्रधान शास्त्रों को आगम कहते हैं, उनकी प्रधानता से कथन करना आगम शैली कहलाती है। - देखें [[ पद्धति ]];<br> | ||
2. द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयों को भी आगम के नय कह जाता है। - देखें [[ नय#I.1 | नय - I.1]]; </p> | |||
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[[ आगम | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ आगम पद्धति | अगला पृष्ठ ]] | |||
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[[Category: आ]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |