कार्य ज्ञान: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> देखें [[ | <p><span class="GRef"> नियमसार / मूल या टीका गाथा 10-14</span> <p class=" PrakritText ">जीवो उवओगमओ उवओगो णाणदंसणो होइ। णाणुवओगो दुविहो सहावणाणं विभावणाणं त्ति ।10। केवलमिंदियरहियं असहायं तं सहावणाणं त्ति। सण्णादिरवियप्पे विहावणाणं हवे दुविहं ।11।</p> | ||
<p class="HindiText">= जीव उपयोगमयी है। उपयोग ज्ञान और दर्शन है। ज्ञानोपयोग दो प्रकारका है स्वभावज्ञान और विभावज्ञान। जो केवल इंद्रिय रहित और असहाय है वह स्वभाव ज्ञान हैं। तहाँ स्वभावज्ञान भी कार्य और कारण रूपसे दो प्रकारका है। '''कार्य स्वभावज्ञान''' तो सकल विमल केवलज्ञान है। और उसका जो कारण परम पारिणामिक भावसे स्थित त्रिकाल निरुपाधिक सहजज्ञान है, वह कारण स्वभावज्ञान है ।10-11। </p> | |||
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Latest revision as of 11:02, 13 March 2023
नियमसार / मूल या टीका गाथा 10-14
जीवो उवओगमओ उवओगो णाणदंसणो होइ। णाणुवओगो दुविहो सहावणाणं विभावणाणं त्ति ।10। केवलमिंदियरहियं असहायं तं सहावणाणं त्ति। सण्णादिरवियप्पे विहावणाणं हवे दुविहं ।11।
= जीव उपयोगमयी है। उपयोग ज्ञान और दर्शन है। ज्ञानोपयोग दो प्रकारका है स्वभावज्ञान और विभावज्ञान। जो केवल इंद्रिय रहित और असहाय है वह स्वभाव ज्ञान हैं। तहाँ स्वभावज्ञान भी कार्य और कारण रूपसे दो प्रकारका है। कार्य स्वभावज्ञान तो सकल विमल केवलज्ञान है। और उसका जो कारण परम पारिणामिक भावसे स्थित त्रिकाल निरुपाधिक सहजज्ञान है, वह कारण स्वभावज्ञान है ।10-11।
देखें उपयोग - I.1.5।