क्षायिक लाभ: Difference between revisions
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<span class="HindiText">देखें [[ लाभ ]]। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/2/4/154/5 </span><span class="SanskritText">लाभांतरायस्याशेषस्य निरासात् परित्यक्तकवलाहारक्रियाणां केवलिनां यतः शरीरबलाधानहेतवोऽन्यमनुजासाधारणाः परमशुभाः सूक्ष्माः अनंताः प्रतिसमयं पुद्गलाः संबंधमुपयांति स क्षायिको लाभः।</span> = <span class="HindiText">समस्त लाभांतराय कर्म के क्षय से कवलाहार क्रिया से रहित केवलियों के '''क्षायिक लाभ''' होता है जिससे उनके शरीर को बल प्रदान करने में कारणभूत दूसरे मनुष्यों को असाधारण अर्थात् कभी प्राप्त न होने वाले परम शुभ और सूक्ष्म ऐसे अनंत परमाणु प्रति समय संबंध को प्राप्त होते हैं। </span><br> | ||
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Latest revision as of 16:57, 11 April 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/2/4/154/5 लाभांतरायस्याशेषस्य निरासात् परित्यक्तकवलाहारक्रियाणां केवलिनां यतः शरीरबलाधानहेतवोऽन्यमनुजासाधारणाः परमशुभाः सूक्ष्माः अनंताः प्रतिसमयं पुद्गलाः संबंधमुपयांति स क्षायिको लाभः। = समस्त लाभांतराय कर्म के क्षय से कवलाहार क्रिया से रहित केवलियों के क्षायिक लाभ होता है जिससे उनके शरीर को बल प्रदान करने में कारणभूत दूसरे मनुष्यों को असाधारण अर्थात् कभी प्राप्त न होने वाले परम शुभ और सूक्ष्म ऐसे अनंत परमाणु प्रति समय संबंध को प्राप्त होते हैं।
देखें लाभ ।
पुराणकोष से
नौ क्षायिक-शुद्धियों मे इस नाम की शुद्धि । यह लाभांतराय कर्म के क्षय से उत्पन्न होती है । महापुराण 24.56