क्षायिक लब्धि
From जैनकोष
धवला 5/1,7,1/191/3 लद्धी पंच वियप्पा दाण-लाह-भोगुपभोग-वीरियमिदि। = (क्षायिक) लब्धि पाँच प्रकार की है - क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग और क्षायिक वीर्य।
लब्धिसार/मूल/166/218 सत्तण्हं पयडीणं खयाद अवरं द खइयलद्धी दु। उक्कस्सखइयलद्धीघाइचउक्कखएण हवे।166। = सात प्रकृतियों के क्षय से असंयत सम्यग्दृष्टि के क्षायिक सम्यक्त्व रूप जघन्य क्षायिक लब्धि होती है। और घातिया कर्म के क्षय से परमात्मा के केवलज्ञानादिरूप उत्कृष्ट क्षायिक लब्धि होती है।166।
देखें लब्धि - 1।