देशघाती प्रकृति: Difference between revisions
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द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 34/99
सर्वप्रकारेणात्मगुणप्रच्छादिकाः कर्मशक्तयः सर्वघातिस्पर्द्धकानि भण्यंते, विवक्षितैकदेशेनात्मगुणप्रच्छादिकाः शक्तयो देशघातिस्पर्द्धकानि भण्यंते।
= सर्वप्रकार से आत्मगुणप्रच्छादक कर्मों की शक्तियाँ सर्वघाती स्पर्धक कहे जाते हैं और विवक्षित एकदेश रूप से आत्मगुणप्रच्छादक शक्तियाँ देशघाती स्पर्द्धक कहे जाते हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनुभाग 4