वस्त्र: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भावपाहुड़ टीका/79/230/9 </span><span class="SanskritText">पंचविधानि पंचप्रकाराणि चेलानि वस्त्राणि...अंडजं वापंचकोशजं तसरिचीरम् (1) वोंडजं वा कर्पासवस्त्रं (2) रोमजं वा ऊर्णामयं वस्त्रं एडकोष्टनदिरोमवस्त्रं (वक्कजं वा वल्कं वृक्षादित्वग्भंंगादिछ-ल्लिवस्त्रं तट्टादिकं चापि (4) चर्मजं वा मृगचर्मव्याघ्रचर्मचित्रकचर्मगजचर्मादिकम्...।</span> = <span class="HindiText">वस्त्र पाँच प्रकार के होते हैं - अंडज, वोंडज, रोमज, वक्कज और चर्मज। रेशम से उत्पन्न वस्त्र '''अंडज''' है। कपास से उपजा '''वोंडज''' है। बकरे, ऊँट आदि की ऊन से उपजा '''रोमज''' है। वृक्ष या बेल आदि छाल से उपजा '''वक्कज''' या '''वल्कलज''' हैं। मृग, व्याघ्र, चीता, गज आदि के चर्म से उपजा '''चर्मज''' है। <br /> | |||
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<span class="GRef"> भगवती आराधना/919 </span><span class="PrakritGatha">वेढेइ विसयहेदुं कलत्तपासेहिं दुव्विमोएहिं। कोसेण कोसियारुव्व दुम्मदी णिच्च अप्पाणं।919।</span> = <span class="HindiText">विषयी जीव स्त्री के स्नेहपाश में अपने को इस तरह वेष्टित करता है। जैसे रेशम को उत्पन्न करने वाला कीड़ा अपने मुख में से निकले हुए तंतुओं से अपने को वेष्टित करता है। <br /> | |||
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<li | <li class="HindiText"> सवस्त्र मुक्ति का निषेध - देखें [[ वेद#7 | वेद - 7]]। </span></li> | ||
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सिले हुए कपड़े । ये रंग-बिरंगे होते थे । कुलकर सीमंकर के समय में इनका शरीर पर धारण करना आरंभ हो गया था । <span class="GRef"> महापुराण 3.108, 5.278 </span></p> | |||
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Latest revision as of 10:44, 15 August 2023
सिद्धांतकोष से
- वस्त्र
भावपाहुड़ टीका/79/230/9 पंचविधानि पंचप्रकाराणि चेलानि वस्त्राणि...अंडजं वापंचकोशजं तसरिचीरम् (1) वोंडजं वा कर्पासवस्त्रं (2) रोमजं वा ऊर्णामयं वस्त्रं एडकोष्टनदिरोमवस्त्रं (वक्कजं वा वल्कं वृक्षादित्वग्भंंगादिछ-ल्लिवस्त्रं तट्टादिकं चापि (4) चर्मजं वा मृगचर्मव्याघ्रचर्मचित्रकचर्मगजचर्मादिकम्...। = वस्त्र पाँच प्रकार के होते हैं - अंडज, वोंडज, रोमज, वक्कज और चर्मज। रेशम से उत्पन्न वस्त्र अंडज है। कपास से उपजा वोंडज है। बकरे, ऊँट आदि की ऊन से उपजा रोमज है। वृक्ष या बेल आदि छाल से उपजा वक्कज या वल्कलज हैं। मृग, व्याघ्र, चीता, गज आदि के चर्म से उपजा चर्मज है।
- रेशमी वस्त्र की उत्पत्ति का ज्ञान आचार्यो को अवश्य था
भगवती आराधना/919 वेढेइ विसयहेदुं कलत्तपासेहिं दुव्विमोएहिं। कोसेण कोसियारुव्व दुम्मदी णिच्च अप्पाणं।919। = विषयी जीव स्त्री के स्नेहपाश में अपने को इस तरह वेष्टित करता है। जैसे रेशम को उत्पन्न करने वाला कीड़ा अपने मुख में से निकले हुए तंतुओं से अपने को वेष्टित करता है।
पुराणकोष से
सिले हुए कपड़े । ये रंग-बिरंगे होते थे । कुलकर सीमंकर के समय में इनका शरीर पर धारण करना आरंभ हो गया था । महापुराण 3.108, 5.278