कनकोदरी: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="HindiText"> विजयार्ध पर्वत पर स्थित नगर के राजा सुकंठ की रानी और सिंहवाहन की जननी । इसकी सौत ने इसकी आराध्यदेवी का तिरस्कार किया जिससे दु:खी होकर इसने संयमश्री आर्यिका से उपदेश सुना तथा जिन प्रतिमा की पूर्ववत् पुन: प्रतिष्ठा कराकर आराधना करती हुई यह मरकर स्वर्ग गयी और वहाँ से च्युत होकर महेंद्र नगर के राजा महेंद्र और रानी मनोवेगा को अंजना नाम को पुत्री हुई । <span class="GRef"> पद्मपुराण 17.154-196 </span></p> | <span class="HindiText"> विजयार्ध पर्वत पर स्थित नगर के राजा सुकंठ की रानी और सिंहवाहन की जननी । इसकी सौत ने इसकी आराध्यदेवी का तिरस्कार किया जिससे दु:खी होकर इसने संयमश्री आर्यिका से उपदेश सुना तथा जिन प्रतिमा की पूर्ववत् पुन: प्रतिष्ठा कराकर आराधना करती हुई यह मरकर स्वर्ग गयी और वहाँ से च्युत होकर महेंद्र नगर के राजा महेंद्र और रानी मनोवेगा को अंजना नाम को पुत्री हुई । </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_17#154|पद्मपुराण - 17.154-196]] </span></p> | ||
</span> | </span> | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: क]] | [[Category: क]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 22:17, 17 November 2023
विजयार्ध पर्वत पर स्थित नगर के राजा सुकंठ की रानी और सिंहवाहन की जननी । इसकी सौत ने इसकी आराध्यदेवी का तिरस्कार किया जिससे दु:खी होकर इसने संयमश्री आर्यिका से उपदेश सुना तथा जिन प्रतिमा की पूर्ववत् पुन: प्रतिष्ठा कराकर आराधना करती हुई यह मरकर स्वर्ग गयी और वहाँ से च्युत होकर महेंद्र नगर के राजा महेंद्र और रानी मनोवेगा को अंजना नाम को पुत्री हुई । पद्मपुराण - 17.154-196