कनकोदरी
From जैनकोष
विजयार्ध पर्वत पर स्थित नगर के राजा सुकंठ की रानी और सिंहवाहन की जननी । इसकी सौत ने इसकी आराध्यदेवी का तिरस्कार किया जिससे दु:खी होकर इसने संयमश्री आर्यिका से उपदेश सुना तथा जिन प्रतिमा की पूर्ववत् पुन: प्रतिष्ठा कराकर आराधना करती हुई यह मरकर स्वर्ग गयी और वहाँ से च्युत होकर महेंद्र नगर के राजा महेंद्र और रानी मनोवेगा को अंजना नाम को पुत्री हुई । पद्मपुराण - 17.154-196