चारित्र मोहनीय: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 6/1, 9-1, 22/22/40/5 </span><span class="PrakritText"> पापक्रियानिवृत्तिश्चारित्रम्। घादिकम्माणि पावं। तेसिं किरिया मिच्छत्तसंजमकसाया। तेसिमभावो चारित्तं। तं मोहेइ आवारेदि त्ति चारित्तमोहणीयं।</span> = <span class="HindiText">पापरूप क्रियाओं की निवृत्ति को चारित्र कहते हैं। घातिया कर्मों को पाप कहते हैं। मिथ्यात्व असंयम और कषाय, ये पाप की क्रियाएँ हैं। इन पाप क्रियाओं के अभाव को चारित्र कहते हैं। उस चारित्र को जो मोहित करता है अर्थात् आच्छादित करता है, उसे '''चारित्र मोहनीय''' कहते हैं। <span class="GRef">( पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/1009 )</span>। </span> | |||
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धवला 6/1, 9-1, 22/22/40/5 पापक्रियानिवृत्तिश्चारित्रम्। घादिकम्माणि पावं। तेसिं किरिया मिच्छत्तसंजमकसाया। तेसिमभावो चारित्तं। तं मोहेइ आवारेदि त्ति चारित्तमोहणीयं। = पापरूप क्रियाओं की निवृत्ति को चारित्र कहते हैं। घातिया कर्मों को पाप कहते हैं। मिथ्यात्व असंयम और कषाय, ये पाप की क्रियाएँ हैं। इन पाप क्रियाओं के अभाव को चारित्र कहते हैं। उस चारित्र को जो मोहित करता है अर्थात् आच्छादित करता है, उसे चारित्र मोहनीय कहते हैं। ( पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/1009 )।
मोहनीय कर्म का एक भेद–देखें चारित्रमोहनीय_निर्देश ।