चारित्र लब्धि
From जैनकोष
लब्धिसार/मूल /168, 184 दुविहा चरित्तलद्धी देसे सयले य ...।168। अवरवरदेशलद्वी। ...।184। = चारित्र लब्धि दो प्रकार है - देश व सकल।168। देशलब्धि जघन्य उत्कृष्ट के भेद से दो प्रकार है।184।
अधिक जानकारी के लिये देखें लब्धि ।