चारित्र विनय: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि/9/23/441/4 </span> <span class="SanskritText">सबहुमानं मोक्षार्थं ज्ञानग्रहणाभ्यासस्मरणादिर्ज्ञानविनयः। शंकादिदोषविरहितं तत्त्वार्थश्रद्धानं दर्शनविनयः। तद्वतश्चारित्रे समाहितचित्तता चारित्रविनयः।</span> =<span class="HindiText"> बहुत आदर के साथ मोक्ष के लिए ज्ञान का ग्रहण करना, अभ्यास करना और स्मरण करना आदि ज्ञान विनय है। शंकादि दोषों से रहित तत्त्वार्थ का श्रद्धान करना दर्शन विनय है। सम्यग्दृष्टि का चारित्र में चित्त का लगना <strong>चारित्र विनय</strong> है। <span class="GRef">( तत्त्वसार/7/31-33)</span>। </span><br /> | |||
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Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
सर्वार्थसिद्धि/9/23/441/4 सबहुमानं मोक्षार्थं ज्ञानग्रहणाभ्यासस्मरणादिर्ज्ञानविनयः। शंकादिदोषविरहितं तत्त्वार्थश्रद्धानं दर्शनविनयः। तद्वतश्चारित्रे समाहितचित्तता चारित्रविनयः। = बहुत आदर के साथ मोक्ष के लिए ज्ञान का ग्रहण करना, अभ्यास करना और स्मरण करना आदि ज्ञान विनय है। शंकादि दोषों से रहित तत्त्वार्थ का श्रद्धान करना दर्शन विनय है। सम्यग्दृष्टि का चारित्र में चित्त का लगना चारित्र विनय है। ( तत्त्वसार/7/31-33)।
अधिक जानकारी के लिये देखें विनय ।