पुलवि: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(7 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <p><span class="GRef"> धवला 14/5,6,93/पृष्ठ नं./पंक्ति</span> <span class="PrakritText">पुलवियाओ णिगोदा त्ति भणंति (85/14)। आवासब्भंतरे संट्ठिदाओ कच्छउडंडरबक्खारं-तोट्ठियपिसिवियाहि समाणाओ पुलवियाओ णाम। एक्केक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्ताओ होंति। एक्केक्कम्हि एक्केक्किस्से पुलवियाए असंखेज्जलोगमेत्ताणि णिगोदसरीराणि ओरालिय-तेजा-कम्मइयपोग्गलोवायाणकारणाणि कच्छउडंडरवक्खारपुलवियाए अंतोट्ठिदव्वसमाणाणि पुधपुध अणंताणं तेहि णिगोदजीवेहि आउण्णाणि होंति। 86/8।</span> <span class="HindiText">पुलवियों को ही निगोद कहते हैं। (85/14), <span class="GRef">( धवला 14/5,6,582/470/1 )</span>। जो आवास के भीतर स्थित हैं और जो कच्छउडअंडर वक्खार के भीतर स्थित पिशवियों के समान हैं उन्हें '''पुलवि''' कहते हैं। एक-एक आवास में वे असंख्यात लोक प्रमाण होती हैं तथा एक-एक आवास की अलग-अलग एक-एक पुलवि में असंख्यात लोक प्रमाण शरीर होते हैं जो कि औदारिक तैजस और कार्मण पुद्गलों के उपादान कारण होते हैं और जो कच्छउडअंडरवक्खार पुलवि के भीतर स्थित द्रव्यों के समान अलग-अलग अनंतानंत निगोद जीवों से अपूर्ण होते हैं। (विशे देखें [[ वनस्पति#3.7 | वनस्पति - 3.7]])। </span></p> | ||
[[पुरोहित | | <noinclude> | ||
[[ पुरोहित | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:प]] | [[ पुलस्त्य | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: प]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 22:21, 17 November 2023
धवला 14/5,6,93/पृष्ठ नं./पंक्ति पुलवियाओ णिगोदा त्ति भणंति (85/14)। आवासब्भंतरे संट्ठिदाओ कच्छउडंडरबक्खारं-तोट्ठियपिसिवियाहि समाणाओ पुलवियाओ णाम। एक्केक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्ताओ होंति। एक्केक्कम्हि एक्केक्किस्से पुलवियाए असंखेज्जलोगमेत्ताणि णिगोदसरीराणि ओरालिय-तेजा-कम्मइयपोग्गलोवायाणकारणाणि कच्छउडंडरवक्खारपुलवियाए अंतोट्ठिदव्वसमाणाणि पुधपुध अणंताणं तेहि णिगोदजीवेहि आउण्णाणि होंति। 86/8। पुलवियों को ही निगोद कहते हैं। (85/14), ( धवला 14/5,6,582/470/1 )। जो आवास के भीतर स्थित हैं और जो कच्छउडअंडर वक्खार के भीतर स्थित पिशवियों के समान हैं उन्हें पुलवि कहते हैं। एक-एक आवास में वे असंख्यात लोक प्रमाण होती हैं तथा एक-एक आवास की अलग-अलग एक-एक पुलवि में असंख्यात लोक प्रमाण शरीर होते हैं जो कि औदारिक तैजस और कार्मण पुद्गलों के उपादान कारण होते हैं और जो कच्छउडअंडरवक्खार पुलवि के भीतर स्थित द्रव्यों के समान अलग-अलग अनंतानंत निगोद जीवों से अपूर्ण होते हैं। (विशे देखें वनस्पति - 3.7)।