अनंतज्ञान: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) सिद्ध जीव के आठ गुणों में एक गुण― संसार के समस्त पदार्थों को एक साथ जाननेवाला ज्ञान । इसके लिए मंत्रों में ‘‘अनंतज्ञानाय नम:’’ पीठिका मंत्र व्यवहृत होता है । यह ज्ञानावरण कर्म के क्षय से उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> महापुराण 20.222-223, 40.14, 42.98 </span>देखें [[ सिद्ध ]]</p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) सिद्ध जीव के आठ गुणों में एक गुण― संसार के समस्त पदार्थों को एक साथ जाननेवाला ज्ञान । इसके लिए मंत्रों में ‘‘अनंतज्ञानाय नम:’’ पीठिका मंत्र व्यवहृत होता है । यह ज्ञानावरण कर्म के क्षय से उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> महापुराण 20.222-223, 40.14, 42.98 </span>देखें [[ सिद्ध ]]</p> | ||
<p id="2">(2) नौ लब्धियों में इस नाम की एक लब्धि । <span class="GRef"> महापुराण 20.265-266 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) नौ लब्धियों में इस नाम की एक लब्धि । <span class="GRef"> महापुराण 20.265-266 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
(1) सिद्ध जीव के आठ गुणों में एक गुण― संसार के समस्त पदार्थों को एक साथ जाननेवाला ज्ञान । इसके लिए मंत्रों में ‘‘अनंतज्ञानाय नम:’’ पीठिका मंत्र व्यवहृत होता है । यह ज्ञानावरण कर्म के क्षय से उत्पन्न होता है । महापुराण 20.222-223, 40.14, 42.98 देखें सिद्ध
(2) नौ लब्धियों में इस नाम की एक लब्धि । महापुराण 20.265-266