अभिचंद्र: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) नवे मनु यशस्वान् के करोड़ों वर्ष के पश्चात् हुए दसवें मनु (कुलंकर) । इनकी आयु कुमुदांग काल प्रमाण थी और मुख चंद्र के समान सौम्य था । ये छ: सौ पच्चीस धनुष ऊंचे तथा देदीप्यमान शरीर के धारी थे । इन्हीं के समय में प्रजा ने रात्रि में अपनी संतान को चंद्रमा दिखा-दिखा कर क्रीडा की थी, इसीलिए इन्हें यह नाम प्राप्त हुआ था । ये चंद्राभ नाम के पुत्र (ग्यारहवें मनु) को जल्प देकर स्वर्ग गये । <span class="GRef"> महापुराण 3.129-133, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_7#161|हरिवंशपुराण - 7.161-163]] </span></p> | |||
<p id="2" class="HindiText">(2) अंधकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों मे नवा पुत्र । इसके चंद्र, शशांक, चंद्राभ, शशी, सोम और अमृतप्रभ ये छ: पुत्र थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#12|हरिवंशपुराण - 18.12-14]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#52|48.52]] </span></p> | |||
<p id="3" class="HindiText">(3) भद्र का पुत्र । इसने विंध्याचल पर चेदिराष्ट्र की स्थापना की थी और शुक्तिमती नदी के तट पर शुक्तीमती नगरी बसायी थी । इसका उग्रवंश में उत्पन्न वसुमति से विवाह हुआ था तथा उससे वसु नाम का पुत्र हुआ था जिसने क्षीरकदंब गुरु से दीक्षा प्राप्त की थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_17#35|हरिवंशपुराण - 17.35-39]] </span></p> | |||
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सिद्धांतकोष से
( महापुराण सर्ग संख्या 3/129) दसवें कुलकर (विशेष देखें शलाका पुरुष - 9)।
पुराणकोष से
(1) नवे मनु यशस्वान् के करोड़ों वर्ष के पश्चात् हुए दसवें मनु (कुलंकर) । इनकी आयु कुमुदांग काल प्रमाण थी और मुख चंद्र के समान सौम्य था । ये छ: सौ पच्चीस धनुष ऊंचे तथा देदीप्यमान शरीर के धारी थे । इन्हीं के समय में प्रजा ने रात्रि में अपनी संतान को चंद्रमा दिखा-दिखा कर क्रीडा की थी, इसीलिए इन्हें यह नाम प्राप्त हुआ था । ये चंद्राभ नाम के पुत्र (ग्यारहवें मनु) को जल्प देकर स्वर्ग गये । महापुराण 3.129-133, हरिवंशपुराण - 7.161-163
(2) अंधकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों मे नवा पुत्र । इसके चंद्र, शशांक, चंद्राभ, शशी, सोम और अमृतप्रभ ये छ: पुत्र थे । हरिवंशपुराण - 18.12-14, 48.52
(3) भद्र का पुत्र । इसने विंध्याचल पर चेदिराष्ट्र की स्थापना की थी और शुक्तिमती नदी के तट पर शुक्तीमती नगरी बसायी थी । इसका उग्रवंश में उत्पन्न वसुमति से विवाह हुआ था तथा उससे वसु नाम का पुत्र हुआ था जिसने क्षीरकदंब गुरु से दीक्षा प्राप्त की थी । हरिवंशपुराण - 17.35-39