अरिंदम: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) मासोपवासी एक मुनि । अयोध्या के राजा अजितंजय के पुत्र अजितसेन ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 54.120-121, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.82 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) मासोपवासी एक मुनि । अयोध्या के राजा अजितंजय के पुत्र अजितसेन ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 54.120-121, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#82|हरिवंशपुराण - 19.82]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) जयकुमार के साथ दीक्षित उनका एक पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 47. 281-283 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) जयकुमार के साथ दीक्षित उनका एक पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 47. 281-283 </span></p> | ||
<p id="3">(3) कोशल देश में स्थित साकेत नगरी के राजा अरिंजय का पुत्र । इसकी रानी श्रीमती तथा सुप्रबुद्धा पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 72.25-28, 34 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कोशल देश में स्थित साकेत नगरी के राजा अरिंजय का पुत्र । इसकी रानी श्रीमती तथा सुप्रबुद्धा पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 72.25-28, 34 </span></p> | ||
<p id="4">(4) महेंद्रनगर के राजा महेंद्र विद्याधर और उसकी रानी हृदयवेगा के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र, अंजनसुंदरी का भाई । <span class="GRef"> पद्मपुराण 15.13-16 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) महेंद्रनगर के राजा महेंद्र विद्याधर और उसकी रानी हृदयवेगा के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र, अंजनसुंदरी का भाई । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_15#13|पद्मपुराण - 15.13-16]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) तीर्थंकर चंद्रप्रभ के पूर्वभव का पिता । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.25-30 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) तीर्थंकर चंद्रप्रभ के पूर्वभव का पिता । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#25|पद्मपुराण - 20.25-30]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) अक्षपुर नगर के राजा हरिध्वज और उसकी रानी लक्ष्मी का पुत्र । इसे किसी मुनि से सातवें दिन मरने और मरकर मल का काट होने की बात ज्ञात हो गई थी, अत: इसने अपने पुत्र प्रीतिंकर को यह सब बताकर मल में उत्पन्न कीट को मारने के लिए कह रखा था प्रीतिकर प्रयत्न करने पर भी उसे मार न सका था क्योंकि वह दिखायी देकर भी मल में ही शीघ्र प्रवेश कर जाता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 77. 57-70 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) अक्षपुर नगर के राजा हरिध्वज और उसकी रानी लक्ष्मी का पुत्र । इसे किसी मुनि से सातवें दिन मरने और मरकर मल का काट होने की बात ज्ञात हो गई थी, अत: इसने अपने पुत्र प्रीतिंकर को यह सब बताकर मल में उत्पन्न कीट को मारने के लिए कह रखा था प्रीतिकर प्रयत्न करने पर भी उसे मार न सका था क्योंकि वह दिखायी देकर भी मल में ही शीघ्र प्रवेश कर जाता था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_77#57|पद्मपुराण - 77.57-70]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित किन्नरोद्गति नगर के स्वामी अर्चिमाली विद्याधर के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.80-82 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित किन्नरोद्गति नगर के स्वामी अर्चिमाली विद्याधर के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#80|हरिवंशपुराण - 19.80-82]] </span></p> | ||
<p id="8">(8) राजा विनमि का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.105 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) राजा विनमि का पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#105|हरिवंशपुराण - 22.105]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
(1) मासोपवासी एक मुनि । अयोध्या के राजा अजितंजय के पुत्र अजितसेन ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 54.120-121, हरिवंशपुराण - 19.82
(2) जयकुमार के साथ दीक्षित उनका एक पुत्र । महापुराण 47. 281-283
(3) कोशल देश में स्थित साकेत नगरी के राजा अरिंजय का पुत्र । इसकी रानी श्रीमती तथा सुप्रबुद्धा पुत्री थी । महापुराण 72.25-28, 34
(4) महेंद्रनगर के राजा महेंद्र विद्याधर और उसकी रानी हृदयवेगा के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र, अंजनसुंदरी का भाई । पद्मपुराण - 15.13-16
(5) तीर्थंकर चंद्रप्रभ के पूर्वभव का पिता । पद्मपुराण - 20.25-30
(6) अक्षपुर नगर के राजा हरिध्वज और उसकी रानी लक्ष्मी का पुत्र । इसे किसी मुनि से सातवें दिन मरने और मरकर मल का काट होने की बात ज्ञात हो गई थी, अत: इसने अपने पुत्र प्रीतिंकर को यह सब बताकर मल में उत्पन्न कीट को मारने के लिए कह रखा था प्रीतिकर प्रयत्न करने पर भी उसे मार न सका था क्योंकि वह दिखायी देकर भी मल में ही शीघ्र प्रवेश कर जाता था । पद्मपुराण - 77.57-70
(7) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित किन्नरोद्गति नगर के स्वामी अर्चिमाली विद्याधर के दीक्षागुरु । हरिवंशपुराण - 19.80-82
(8) राजा विनमि का पुत्र । हरिवंशपुराण - 22.105