अश्वत्थामा: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> कृष्ण- | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> कृष्ण-जरासंघ युद्ध में जरासंध के पक्ष का योद्धा । द्रोणाचार्य एवं अश्विनी का पुत्र । यह धनुर्विद्या में इतना निपुण था कि अर्जुन ही इसका एक प्रतिस्पर्धी था । पांडवपुराण में इसकी जननी गोतम की पुत्री गौतमी बताई गयी है । इसने अर्जुन के साथ युद्ध किया था जिसमें अर्जुन ने इसे भूमि पर गिरा दिया था । युद्ध मे भीम ने मालव नरेश का इस नाम का एक हाथी मार गिराया था । अश्वत्थामा मारा गया यह सुनकर द्रोणाचार्य ने बहुत रुदन किया था और वह युद्ध से विरत हो गया था । तभी घृष्टार्जुन ने द्रोणाचार्य को मार डाला था । इसने युद्ध में माहेश्वरी विद्या को सहायतार्थ बुलाकर पांडवों की सेना को घेर लिया था तपा गज और रथ सेनाओं के नायकों को नष्ट कर दिया था । अंत में यह भी अर्जुन द्वारा युद्ध में गिराया जाकर मूर्छित हुआ और मरण को प्राप्त हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 71.76-77, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#48|हरिवंशपुराण - 45.48-49]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 10.148-151, 18.140-142, 20.181-184, 222-223, 307-310 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पांडवपुराण सर्ग/श्लोक
(1) गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था (10/150-52)। (2) कौरवों की ओर से पांडवों के साथ लड़ा (19/53)। (3) अंत में अर्जुन द्वारा युद्ध में मारा गया (20/184)।
पुराणकोष से
कृष्ण-जरासंघ युद्ध में जरासंध के पक्ष का योद्धा । द्रोणाचार्य एवं अश्विनी का पुत्र । यह धनुर्विद्या में इतना निपुण था कि अर्जुन ही इसका एक प्रतिस्पर्धी था । पांडवपुराण में इसकी जननी गोतम की पुत्री गौतमी बताई गयी है । इसने अर्जुन के साथ युद्ध किया था जिसमें अर्जुन ने इसे भूमि पर गिरा दिया था । युद्ध मे भीम ने मालव नरेश का इस नाम का एक हाथी मार गिराया था । अश्वत्थामा मारा गया यह सुनकर द्रोणाचार्य ने बहुत रुदन किया था और वह युद्ध से विरत हो गया था । तभी घृष्टार्जुन ने द्रोणाचार्य को मार डाला था । इसने युद्ध में माहेश्वरी विद्या को सहायतार्थ बुलाकर पांडवों की सेना को घेर लिया था तपा गज और रथ सेनाओं के नायकों को नष्ट कर दिया था । अंत में यह भी अर्जुन द्वारा युद्ध में गिराया जाकर मूर्छित हुआ और मरण को प्राप्त हुआ । महापुराण 71.76-77, हरिवंशपुराण - 45.48-49, पांडवपुराण 10.148-151, 18.140-142, 20.181-184, 222-223, 307-310