कृषिकर्म: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> राजवार्तिक/3/36/2/200/32 </span><span class="SanskritText">कर्मार्यास्त्रेधा-सावद्यकर्मार्या अल्पसावद्यकर्मार्या असावद्यकर्मार्याश्चेति। सावद्यकर्मार्या: षोढा-असि-मसि-कृषि-विद्या-शिल्प-वणिक्कर्मभेदात् ।</span> =<span class="HindiText">कर्मार्य तीन प्रकार के हैं-सावद्यकर्मार्य, अल्पसावद्यकर्मार्य और असावद्यकर्मार्य। तहाँ भी सावद्यकर्मार्य असि, मसि, '''कृषि''', विद्या, शिल्प और वणिक्कर्म के भेद से छह प्रकार के हैं।</span></p> | |||
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<span class="HindiText"> प्रजा को आजीविका के लिए वृषभदेव द्वारा बताये गये षट्कर्मों मे तृतीय कर्म-भूमि को जोतना-बोना । <span class="GRef"> महापुराण 16.179-181 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#35|हरिवंशपुराण - 9.35]] </span> | |||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/3/36/2/200/32 कर्मार्यास्त्रेधा-सावद्यकर्मार्या अल्पसावद्यकर्मार्या असावद्यकर्मार्याश्चेति। सावद्यकर्मार्या: षोढा-असि-मसि-कृषि-विद्या-शिल्प-वणिक्कर्मभेदात् । =कर्मार्य तीन प्रकार के हैं-सावद्यकर्मार्य, अल्पसावद्यकर्मार्य और असावद्यकर्मार्य। तहाँ भी सावद्यकर्मार्य असि, मसि, कृषि, विद्या, शिल्प और वणिक्कर्म के भेद से छह प्रकार के हैं।
देखें सावद्य - 3।
पुराणकोष से
प्रजा को आजीविका के लिए वृषभदेव द्वारा बताये गये षट्कर्मों मे तृतीय कर्म-भूमि को जोतना-बोना । महापुराण 16.179-181 हरिवंशपुराण - 9.35