घनोदधि: Difference between revisions
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<p> सब ओर से लोक को घेर कर स्थित प्रथम वलय । यह गोमूत्रवर्णधारी, दंडाकार, लंबा, घनीभूत, ऊपर नीचे चारों ओर स्थित और लोक के अंत तक वेष्टित है । अधोलोक के नीचे बीस हजार योजन और लोक के ऊपर कुछ कम एक योजन विस्तृत है । अधोलोक क नीचे यह दंडाकार है । मध्यलोक में यह पाँच योजन विस्तृत है । यह ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर नामक पाँचवें स्वर्ग के अंत में सात योजन और मोक्षस्थान के समीप पाँच योजन विकृत है । लोक के ऊपर इसका विस्तार अर्ध योजन है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.33-41 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सब ओर से लोक को घेर कर स्थित प्रथम वलय । यह गोमूत्रवर्णधारी, दंडाकार, लंबा, घनीभूत, ऊपर नीचे चारों ओर स्थित और लोक के अंत तक वेष्टित है । अधोलोक के नीचे बीस हजार योजन और लोक के ऊपर कुछ कम एक योजन विस्तृत है । अधोलोक क नीचे यह दंडाकार है । मध्यलोक में यह पाँच योजन विस्तृत है । यह ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर नामक पाँचवें स्वर्ग के अंत में सात योजन और मोक्षस्थान के समीप पाँच योजन विकृत है । लोक के ऊपर इसका विस्तार अर्ध योजन है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#33|हरिवंशपुराण - 4.33-41]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सब ओर से लोक को घेर कर स्थित प्रथम वलय । यह गोमूत्रवर्णधारी, दंडाकार, लंबा, घनीभूत, ऊपर नीचे चारों ओर स्थित और लोक के अंत तक वेष्टित है । अधोलोक के नीचे बीस हजार योजन और लोक के ऊपर कुछ कम एक योजन विस्तृत है । अधोलोक क नीचे यह दंडाकार है । मध्यलोक में यह पाँच योजन विस्तृत है । यह ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर नामक पाँचवें स्वर्ग के अंत में सात योजन और मोक्षस्थान के समीप पाँच योजन विकृत है । लोक के ऊपर इसका विस्तार अर्ध योजन है । हरिवंशपुराण - 4.33-41