जय: Difference between revisions
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<p id="2">(2) ग्यारह अंग और दश पूर्व के ज्ञाता ग्यारह मुनियों मे चौथे मुनि । में महावीर के मोक्ष जाने के एक सौ बासठ वर्ष पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष के मध्य में हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 2. 143, 76. 522, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 62, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 45-47 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) ग्यारह अंग और दश पूर्व के ज्ञाता ग्यारह मुनियों मे चौथे मुनि । में महावीर के मोक्ष जाने के एक सौ बासठ वर्ष पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष के मध्य में हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 2. 143, 76. 522, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#62|हरिवंशपुराण - 1.62]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 45-47 </span></p> | ||
<p id="3">(3) शलाका-पुरुष एवं ग्यारहवां चक्रवर्त्ती । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 287, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101, 110 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) शलाका-पुरुष एवं ग्यारहवां चक्रवर्त्ती । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#287|हरिवंशपुराण - 60.287]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101, 110 </span></p> | ||
<p id="4">(4) एक नृप । यह राम के पक्ष का | <p id="4" class="HindiText">(4) एक नृप । यह राम के पक्ष का अत्यंत बलवान योद्धा था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_60#58|पद्मपुराण - 60.58-59]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) राजा धृतराष्ट्र और | <p id="5" class="HindiText">(5) राजा धृतराष्ट्र और गांधारी का चौसठवाँ पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 8.200 </span></p> | ||
<p id="6">(6) विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का इकतालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19. 84 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का इकतालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19. 84 </span></p> | ||
<p id="7">(7) | <p id="7" class="HindiText">(7) नंदनपुर का राजा । इसने विमलवाहन तीर्थंकर को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 59-42-43 </span></p> | ||
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<p id="9">(9) सोमप्रभ राजा का पुत्र जयकुमार । | <p id="9" class="HindiText">(9) सोमप्रभ राजा का पुत्र जयकुमार । अकंपन की पुत्री सुलोचना ने इसे पति के रूप में वरण किया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 3. 55-67 </span></p> | ||
<p id="10">(10) विद्याधर नमि का | <p id="10">(10) विद्याधर नमि का कांतिमां पुत्र । इसका संक्षिप्त नाम जय था । इसके दस से अधिक भाई थे और दो बहिनें थी । <span class="GRef"> महापुराण 43. 50, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#108|हरिवंशपुराण - 22.108]] </span></p> | ||
<p id="11">(11) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 561 </span></p> | <p id="11">(11) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#561|हरिवंशपुराण - 60.561]] </span></p> | ||
<p id="12">(12) तीर्थंकर | <p id="12">(12) तीर्थंकर अनंतनाथ के प्रथम गणधर । ये सात ऋद्धियों से युक्त तथा शास्त्रों के पारगामी थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#348|हरिवंशपुराण - 60.348]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
न्याय संबंधी वाद में जय-पराजय व्यवस्था–देखें न्याय - 2।
- भाविकालीन 21वें तीर्थंकर–देखें तीर्थंकर - 5;
- (वृहद् कथा कोश/कथा नं.6/पृष्ठ) सिंहलद्वीप के राज गगनादित्य का पुत्र था (17) पिता की मृत्यु के पश्चात् उसने एक मित्र उज्जयिनी नगरी के राजा के पास में रहने लगा। वहाँ एक दिन भोजन करते समय अपने भाई के मुख से सुना कि यह भोजन ‘विषान्न’ है। ‘विषान्न’ कहने से उसका तात्पर्य पौष्टिक था, पर वह इसका अर्थ विषमिश्रित लगा बैठा और इसीलिए केवल विष खाने की कल्पना के कारण मर गया।17-18।
पुराणकोष से
(1) भगवान् वृषभदेव के एक गणधर । महापुराण 43.65
(2) ग्यारह अंग और दश पूर्व के ज्ञाता ग्यारह मुनियों मे चौथे मुनि । में महावीर के मोक्ष जाने के एक सौ बासठ वर्ष पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष के मध्य में हुए थे । महापुराण 2. 143, 76. 522, हरिवंशपुराण - 1.62, वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 45-47
(3) शलाका-पुरुष एवं ग्यारहवां चक्रवर्त्ती । हरिवंशपुराण - 60.287, वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101, 110
(4) एक नृप । यह राम के पक्ष का अत्यंत बलवान योद्धा था । पद्मपुराण - 60.58-59
(5) राजा धृतराष्ट्र और गांधारी का चौसठवाँ पुत्र । महापुराण 8.200
(6) विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का इकतालीसवाँ नगर । महापुराण 19. 84
(7) नंदनपुर का राजा । इसने विमलवाहन तीर्थंकर को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 59-42-43
(8) कृष्ण का एक योद्धा एवं भाई । महापुराण 71. 73, हरिवंशपुराण - 50.115
(9) सोमप्रभ राजा का पुत्र जयकुमार । अकंपन की पुत्री सुलोचना ने इसे पति के रूप में वरण किया था । पांडवपुराण 3. 55-67
(10) विद्याधर नमि का कांतिमां पुत्र । इसका संक्षिप्त नाम जय था । इसके दस से अधिक भाई थे और दो बहिनें थी । महापुराण 43. 50, हरिवंशपुराण - 22.108
(11) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । हरिवंशपुराण - 60.561
(12) तीर्थंकर अनंतनाथ के प्रथम गणधर । ये सात ऋद्धियों से युक्त तथा शास्त्रों के पारगामी थे । हरिवंशपुराण - 60.348