धनपाल: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.32 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_52#32|हरिवंशपुराण - 52.32]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) सद्भद्रिलपुर-नगर के वैश्य धनदत्त और उसकी पत्नी नंदयशा का प्रथम पुत्र । ये नौ भाई थे । इसकी दो बहिनें थी । यह अपने पिता और भाइयों के साथ मंदिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षित हो गया था । इसकी माता नंदयशा और बहिनों ने भी सुदर्शना आर्यिका के पास संयम धारण कर लिया था । अपने पिता के केवलज्ञानी होने क पश्चात् इन सभी भाई-बहिनों और इनकी माता ने राजगृह-स्थित सिद्धशिला पर संन्यास-धारण किया । उस समय इनकी माता ने निदान किया कि उसके वे सभी पुत्र-पुत्रियाँ अगले भव में भी उसकी पुत्र और पुत्रियाँ बनें । अंत में अपनी माता तथा भाई-बहिनों के साथ यह आनत स्वर्ग के शातंकर-विमान में देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर यह राजा अंधकवृष्णि और रानी सुभद्रा का समुद्रविजय नामक पुत्र हुआ । इसके आठों भाई भी वसुदेव आदि आठ भाई हुए और दोनों बहिनें कुंती और माद्री हुई । <span class="GRef"> महापुराण 70. 182-196, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.112-121 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) सद्भद्रिलपुर-नगर के वैश्य धनदत्त और उसकी पत्नी नंदयशा का प्रथम पुत्र । ये नौ भाई थे । इसकी दो बहिनें थी । यह अपने पिता और भाइयों के साथ मंदिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षित हो गया था । इसकी माता नंदयशा और बहिनों ने भी सुदर्शना आर्यिका के पास संयम धारण कर लिया था । अपने पिता के केवलज्ञानी होने क पश्चात् इन सभी भाई-बहिनों और इनकी माता ने राजगृह-स्थित सिद्धशिला पर संन्यास-धारण किया । उस समय इनकी माता ने निदान किया कि उसके वे सभी पुत्र-पुत्रियाँ अगले भव में भी उसकी पुत्र और पुत्रियाँ बनें । अंत में अपनी माता तथा भाई-बहिनों के साथ यह आनत स्वर्ग के शातंकर-विमान में देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर यह राजा अंधकवृष्णि और रानी सुभद्रा का समुद्रविजय नामक पुत्र हुआ । इसके आठों भाई भी वसुदेव आदि आठ भाई हुए और दोनों बहिनें कुंती और माद्री हुई । <span class="GRef"> महापुराण 70. 182-196, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#112|हरिवंशपुराण - 18.112-121]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) राजा सत्यंधर के नगर का एक श्रावक, वरदत्त का पिता । <span class="GRef"> महापुराण 75.256-259 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) राजा सत्यंधर के नगर का एक श्रावक, वरदत्त का पिता । <span class="GRef"> महापुराण 75.256-259 </span></p> | ||
<p id="4">(4) जंबूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा महाबल का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 50.2-3, 10 </span>देखें [[ महाबल ]]।</p> | <p id="4" class="HindiText">(4) जंबूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा महाबल का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 50.2-3, 10 </span>देखें [[ महाबल ]]।</p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
यक्ष जाति के व्यंतरदेवों का एक भेद–देखें यक्ष ।
पुराणकोष से
(1) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण - 52.32
(2) सद्भद्रिलपुर-नगर के वैश्य धनदत्त और उसकी पत्नी नंदयशा का प्रथम पुत्र । ये नौ भाई थे । इसकी दो बहिनें थी । यह अपने पिता और भाइयों के साथ मंदिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षित हो गया था । इसकी माता नंदयशा और बहिनों ने भी सुदर्शना आर्यिका के पास संयम धारण कर लिया था । अपने पिता के केवलज्ञानी होने क पश्चात् इन सभी भाई-बहिनों और इनकी माता ने राजगृह-स्थित सिद्धशिला पर संन्यास-धारण किया । उस समय इनकी माता ने निदान किया कि उसके वे सभी पुत्र-पुत्रियाँ अगले भव में भी उसकी पुत्र और पुत्रियाँ बनें । अंत में अपनी माता तथा भाई-बहिनों के साथ यह आनत स्वर्ग के शातंकर-विमान में देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर यह राजा अंधकवृष्णि और रानी सुभद्रा का समुद्रविजय नामक पुत्र हुआ । इसके आठों भाई भी वसुदेव आदि आठ भाई हुए और दोनों बहिनें कुंती और माद्री हुई । महापुराण 70. 182-196, हरिवंशपुराण - 18.112-121
(3) राजा सत्यंधर के नगर का एक श्रावक, वरदत्त का पिता । महापुराण 75.256-259
(4) जंबूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा महाबल का पुत्र । महापुराण 50.2-3, 10 देखें महाबल ।