धनश्री: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा धनंजय और रानी सर्वश्री की पुत्री । स्वयंवर में इसने अपने पिता के भानजे हरिवाहन को वरा था । <span class="GRef"> महापुराण 71.252-256, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.135-136 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा धनंजय और रानी सर्वश्री की पुत्री । स्वयंवर में इसने अपने पिता के भानजे हरिवाहन को वरा था । <span class="GRef"> महापुराण 71.252-256, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_33#135|हरिवंशपुराण - 33.135-136]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) भरतक्षेत्र में | <p id="2" class="HindiText">(2) भरतक्षेत्र में चंपानगरी के अग्निभूति ब्राह्मण और अग्निला ब्राह्मणी की पुत्री । यह सोमश्री और नागश्री की बड़ी बहिन थी । सहदेव ब्राह्मण के पुत्र सोमदत्त से विवाहित इसके पति ने वरुण गुरु के पास और इसने अपनी बहिन मित्रश्री के साथ गुणवती आर्यिका के समीप दीक्षा धारण कर ली थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_64#4|हरिवंशपुराण - 64.4-6]], 12-13 </span>मरकर यह अच्युत स्वर्ग में सामानिक देव हुई । वहाँ से च्युत होकर यह पांडु पुत्र नकुल हुई । <span class="GRef"> महापुराण 72.228-237, 262, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_64#111|हरिवंशपुराण - 64.111-112]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 23.78-82, 108-112, 24.77 </span></p> | ||
<p id="3">(3) विदेहक्षेत्र के | <p id="3" class="HindiText">(3) विदेहक्षेत्र के गंधिल देश में पलालपर्वत-ग्राम के निवासी देवलिग्राम की पुत्री । यह राजा वज्रजंघ की रानी श्रीमती के पूर्वभव का जीव थी । <span class="GRef"> महापुराण 6.121-135 </span></p> | ||
<p id="4">(4) अंग देश में | <p id="4" class="HindiText">(4) अंग देश में चंपानगरा के राजा श्रीषेण की रानी और कांतपुरनगर के राजा सुवर्णवर्मा की बहिन । <span class="GRef"> महापुराण 75.81-82 </span></p> | ||
<p id="5">(5) धनदत्त की पत्नी । यह रूपश्री की जननी थी । इसने रूपश्री का विवाह | <p id="5" class="HindiText">(5) धनदत्त की पत्नी । यह रूपश्री की जननी थी । इसने रूपश्री का विवाह जंबू कुमार के साथ किया था । <span class="GRef"> महापुराण 76.48-50 </span></p> | ||
<p id="6">(6) विदेहक्षेत्र की | <p id="6" class="HindiText">(6) विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणीनगरी के निवासी सर्वसमृद्ध नामक वैश्य की स्त्री, धनंजय की अनुजा । <span class="GRef"> महापुराण 47.191-192 </span></p> | ||
<p id="7">(7) पुष्करद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के | <p id="7" class="HindiText">(7) पुष्करद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के नंदनपुर-नगर के राजा अमितविक्रम और उसकी रानी आनंदमती की पुत्री । इसने सन्यासमरण कर सौधर्म स्वर्ग पाया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.12-19 </span></p> | ||
<p id="8">(8) एक | <p id="8" class="HindiText">(8) एक व्यंतरी । यह पूर्व जन्म में पुंडरीकिणी-नगरी के राजा सुरदेव की रानी पृथ्वी की वसंतिका नाम की दासी थी । <span class="GRef"> महापुराण 46.351-356 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
(1) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा धनंजय और रानी सर्वश्री की पुत्री । स्वयंवर में इसने अपने पिता के भानजे हरिवाहन को वरा था । महापुराण 71.252-256, हरिवंशपुराण - 33.135-136
(2) भरतक्षेत्र में चंपानगरी के अग्निभूति ब्राह्मण और अग्निला ब्राह्मणी की पुत्री । यह सोमश्री और नागश्री की बड़ी बहिन थी । सहदेव ब्राह्मण के पुत्र सोमदत्त से विवाहित इसके पति ने वरुण गुरु के पास और इसने अपनी बहिन मित्रश्री के साथ गुणवती आर्यिका के समीप दीक्षा धारण कर ली थी । हरिवंशपुराण - 64.4-6, 12-13 मरकर यह अच्युत स्वर्ग में सामानिक देव हुई । वहाँ से च्युत होकर यह पांडु पुत्र नकुल हुई । महापुराण 72.228-237, 262, हरिवंशपुराण - 64.111-112, पांडवपुराण 23.78-82, 108-112, 24.77
(3) विदेहक्षेत्र के गंधिल देश में पलालपर्वत-ग्राम के निवासी देवलिग्राम की पुत्री । यह राजा वज्रजंघ की रानी श्रीमती के पूर्वभव का जीव थी । महापुराण 6.121-135
(4) अंग देश में चंपानगरा के राजा श्रीषेण की रानी और कांतपुरनगर के राजा सुवर्णवर्मा की बहिन । महापुराण 75.81-82
(5) धनदत्त की पत्नी । यह रूपश्री की जननी थी । इसने रूपश्री का विवाह जंबू कुमार के साथ किया था । महापुराण 76.48-50
(6) विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणीनगरी के निवासी सर्वसमृद्ध नामक वैश्य की स्त्री, धनंजय की अनुजा । महापुराण 47.191-192
(7) पुष्करद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के नंदनपुर-नगर के राजा अमितविक्रम और उसकी रानी आनंदमती की पुत्री । इसने सन्यासमरण कर सौधर्म स्वर्ग पाया था । महापुराण 63.12-19
(8) एक व्यंतरी । यह पूर्व जन्म में पुंडरीकिणी-नगरी के राजा सुरदेव की रानी पृथ्वी की वसंतिका नाम की दासी थी । महापुराण 46.351-356