धनश्रुति
From जैनकोष
अरिंजय और जयावती का दूसरा पुत्र । यह क्रूरामर का अनुज तथा राजा सहस्रशीर्ष का विश्वासपात्र सेवक था । इसने अपने भाई और स्वामी के साथ केवली से दीक्षा धारण कर ली थी । इसके फलस्वरूप ये दोनों भाई मरकर शतार स्वर्ग में देव हुए । पद्मपुराण - 5.128-132