धातकीखंड: Difference between revisions
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<span class="HindiText">मध्यलोक में स्थित एक द्वीप है।</span> <span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/2600 </span><span class="PrakritGatha">उत्तरदेवकुरूसं खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा। चेट्ठंति य गुणणामो तेण पुढं धादईखंडो।2600। </span>=<span class="HindiText">धातकीखंड द्वीप के भीतर उत्तरकुरु और देवकुरु क्षेत्रों में धातकी वृक्ष स्थित है, इसी कारण इस द्वीप का ‘धातकी खंड’ यह सार्थक नाम है। | <span class="HindiText">मध्यलोक में स्थित एक द्वीप है।</span> <span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/2600 </span><span class="PrakritGatha">उत्तरदेवकुरूसं खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा। चेट्ठंति य गुणणामो तेण पुढं धादईखंडो।2600। </span>=<span class="HindiText">धातकीखंड द्वीप के भीतर उत्तरकुरु और देवकुरु क्षेत्रों में धातकी वृक्ष स्थित है, इसी कारण इस द्वीप का ‘धातकी खंड’ यह सार्थक नाम है। <span class="GRef">( सर्वार्थसिद्धि/3/33/227/6 )</span>, <span class="GRef">( राजवार्तिक/3/33/6/196/3 )</span> नोट‒इस द्वीप संबंधी विशेष (देखें [[ लोक#4.2 | लोक - 4.2]])। </span> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> आरंभिक द्वीपों मे द्वितीय द्वीप । इसका विस्तार चार लाख योजन है । इसकी पूर्व दिशा में मंदिर पर्वत है । <span class="GRef"> महापुराण 6. 126,51.2,52.2, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 12.22, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.489, 54.17, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 21.24-27 </span>देखें [[ द्वीप ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> आरंभिक द्वीपों मे द्वितीय द्वीप । इसका विस्तार चार लाख योजन है । इसकी पूर्व दिशा में मंदिर पर्वत है । <span class="GRef"> महापुराण 6. 126,51.2,52.2, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_12#22|पद्मपुराण - 12.22]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#489|हरिवंशपुराण - 5.489]], 54.17, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 21.24-27 </span>देखें [[ द्वीप ]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
मध्यलोक में स्थित एक द्वीप है। तिलोयपण्णत्ति/4/2600 उत्तरदेवकुरूसं खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा। चेट्ठंति य गुणणामो तेण पुढं धादईखंडो।2600। =धातकीखंड द्वीप के भीतर उत्तरकुरु और देवकुरु क्षेत्रों में धातकी वृक्ष स्थित है, इसी कारण इस द्वीप का ‘धातकी खंड’ यह सार्थक नाम है। ( सर्वार्थसिद्धि/3/33/227/6 ), ( राजवार्तिक/3/33/6/196/3 ) नोट‒इस द्वीप संबंधी विशेष (देखें लोक - 4.2)।
पुराणकोष से
आरंभिक द्वीपों मे द्वितीय द्वीप । इसका विस्तार चार लाख योजन है । इसकी पूर्व दिशा में मंदिर पर्वत है । महापुराण 6. 126,51.2,52.2, पद्मपुराण - 12.22, हरिवंशपुराण - 5.489, 54.17, पांडवपुराण 21.24-27 देखें द्वीप