धृति: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
देखें [[ संस्कार#2 | संस्कार - 2]]। | |||
<noinclude> | |||
[[ | [[ धृतव्यास | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:ध]] | [[ धृति (देवी) | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: ध]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) छ: जिनमातृक देवियों में एक देवी । यह जिनमाता के शरीर में अपने धैर्य गुण को स्थापित करती है । <span class="GRef"> महापुराण 38.226 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 7. 107. 108 </span></p> | |||
<p id="2" class="HindiText">(2) राजा समुद्रविजय के भाई राजा अक्षोभ्य की रानी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#3|हरिवंशपुराण - 19.3]] </span></p> | |||
<p id="3" class="HindiText">(3) तिगिंछ सरोवर के शोभितकमल-भवनों में रहने वाली भवनवासिनी एक देवी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#121|हरिवंशपुराण - 5.121]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#130|हरिवंशपुराण - 5.130]] </span></p> | |||
<p id="4" class="HindiText">(4) रुचकगिरि के सुदर्शनकूट की निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी । यह चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । <span class="GRef"> महापुराण 12. 163-164, 38. 322, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#112|पद्मपुराण - 3.112-113]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#717|हरिवंशपुराण - 5.717]] </span></p> | |||
<p id="5" class="HindiText">(5) गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में चौथी क्रिया । यह गर्भ की वृद्धि के लिए गर्भ से सातवें मास में की जाती है । प्रथम क्रिया के समान इसमें भी पूजन आदि कार्य किये जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 38. 55-82 </span></p> | |||
</div> | |||
<noinclude> | |||
[[ धृतव्यास | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ धृति (देवी) | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: ध]] |
Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
देखें संस्कार - 2।
पुराणकोष से
(1) छ: जिनमातृक देवियों में एक देवी । यह जिनमाता के शरीर में अपने धैर्य गुण को स्थापित करती है । महापुराण 38.226 वीरवर्द्धमान चरित्र 7. 107. 108
(2) राजा समुद्रविजय के भाई राजा अक्षोभ्य की रानी । हरिवंशपुराण - 19.3
(3) तिगिंछ सरोवर के शोभितकमल-भवनों में रहने वाली भवनवासिनी एक देवी । हरिवंशपुराण - 5.121,हरिवंशपुराण - 5.130
(4) रुचकगिरि के सुदर्शनकूट की निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी । यह चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । महापुराण 12. 163-164, 38. 322, पद्मपुराण - 3.112-113, हरिवंशपुराण - 5.717
(5) गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में चौथी क्रिया । यह गर्भ की वृद्धि के लिए गर्भ से सातवें मास में की जाती है । प्रथम क्रिया के समान इसमें भी पूजन आदि कार्य किये जाते हैं । महापुराण 38. 55-82