नकुल: Difference between revisions
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<span class="GRef">( पांडवपुराण/सर्ग/श्लोक</span>)। मद्री रानी से राजा पांडु का पुत्र था। (8/174-175)। ताऊ भीष्म से तथा गुरु द्रोणाचार्य से धनुषविद्या प्राप्त की। (8/208-214)। (विशेष देखें [[ पांडव ]])। अंत में अपना पूर्वभव सुन दीक्षा धारण कर ली। (25/12)। घोर तप किया (25/17-51)। दुर्योधन के भानजे कुर्युधर द्वारा शत्रुंजयगिरि पर्वत पर घोर उपसर्ग सहा और सर्वार्थसिद्धि गये (25/52-139)। पूर्व भव नं.2 में यह धनश्री ब्राह्मणी था।(23/82)। और पूर्व भव नं.1 में अच्युतस्वर्ग में देव। (22/114)। वर्तमान भव में नकुल हुए। (24/77)। | |||
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<p id="2">(2) उज्जयिनी नगरी के सेठ धनदेव के पुत्र नागदत्त का हिस्सेदार भाई, सहदेव का अग्रज इसने नागदत्त के साथ छल किया था । यह मरकर चंदना को सताने वाला सिंह नामक भील हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 75.95-96, 110, 133-135, 171 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) उज्जयिनी नगरी के सेठ धनदेव के पुत्र नागदत्त का हिस्सेदार भाई, सहदेव का अग्रज इसने नागदत्त के साथ छल किया था । यह मरकर चंदना को सताने वाला सिंह नामक भील हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 75.95-96, 110, 133-135, 171 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
( पांडवपुराण/सर्ग/श्लोक)। मद्री रानी से राजा पांडु का पुत्र था। (8/174-175)। ताऊ भीष्म से तथा गुरु द्रोणाचार्य से धनुषविद्या प्राप्त की। (8/208-214)। (विशेष देखें पांडव )। अंत में अपना पूर्वभव सुन दीक्षा धारण कर ली। (25/12)। घोर तप किया (25/17-51)। दुर्योधन के भानजे कुर्युधर द्वारा शत्रुंजयगिरि पर्वत पर घोर उपसर्ग सहा और सर्वार्थसिद्धि गये (25/52-139)। पूर्व भव नं.2 में यह धनश्री ब्राह्मणी था।(23/82)। और पूर्व भव नं.1 में अच्युतस्वर्ग में देव। (22/114)। वर्तमान भव में नकुल हुए। (24/77)।
पुराणकोष से
(1) पाँच पांडवों में चौथा पांडव । यह कुरुवंशी राजा पांडु और उसकी दूसरी रानी माद्री का ज्येष्ठ पुत्र था । सहदेव इसका छोटा भाई था । पांडु राजा की पहली रानी कुंती से उत्पन्न युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन इसके बड़े भाई थे । इनको पितामह भीष्म ने शिक्षा दी तथा गुरु द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखायी थी । महापुराण 70.114-116, हरिवंशपुराण - 45.2, पांडवपुराण 8.174-175,208-212 इसने अपने भाइयों के साथ आयी हुई विपत्तियों को सहन किया और कौरवों के संहार में अपना वीरतापूर्ण योग दिया । युद्ध में विजय के पश्चात् इसने भी अपने भाइयों के साथ तीर्थंकर नेमि नाथ से दीक्षा ग्रहण की और तेरह प्रकार के चारित्र का पालन किया । पांडवपुराण 25.12-14,20 शत्रुंजय पर्वत पर अन्य पांडवों के साथ इस पर दुर्योधन के भानजे कुर्यथर ने अनेक उपसर्ग दिये थे । उसने इसे भी लोहे के तप्त आभूषण पहनाये थे । इसने भी उपसर्ग को सहन किया । कषाय के किंचित् अवशिष्ट रहने के कारण मरने पर यह सर्वार्थसिद्धि में देव हुआ । महापुराण 72. 267-271, पांडवपुराण 22.52-65, 138-140 दूसरे पूर्वभव में यह धनश्री ब्राह्मणी और प्रथम पूर्वभव में अच्युत स्वर्ग में देव था । पांडवपुराण 23.82, 114-115,24.89-90
(2) उज्जयिनी नगरी के सेठ धनदेव के पुत्र नागदत्त का हिस्सेदार भाई, सहदेव का अग्रज इसने नागदत्त के साथ छल किया था । यह मरकर चंदना को सताने वाला सिंह नामक भील हुआ था । महापुराण 75.95-96, 110, 133-135, 171