निर्वृत्ति: Difference between revisions
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<p id="2">(2) द्रव्येंद्रिय का एक रूप । इसका दूसरा रूप उपकरण है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.85 </span></p> | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/2/17/175/4 </span><span class="SanskritText">निवर्त्यते इति निर्वृत्ति:।</span> =<span class="HindiText">रचना का नाम निर्वृत्ति है।</span> <br><span class="GRef"> राजवार्तिक/2/10/1/130/7 </span><span class="SanskritText">कर्मणा या निर्वर्त्यते निष्पाद्यते सा निर्वृत्तिरित्युपदिश्यते।</span> =<span class="HindiText">नाम कर्म से जिसकी रचना हो उसे (इंद्रिय को) निर्वृत्ति कहते हैं।</span></p> | ||
<p id="3">(3) एक आर्यिका । अरिंजयपुर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेना की पुत्री प्रीतिमती ने उसके पास दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.31 </span></p> | <ul> | ||
<p id="4">(4) तीर्थंकर पद्मप्रभ की शिविका । <span class="GRef"> महापुराण 52.51 </span></p> | <li class="HindiText"><strong> पर्याप्त अपर्याप्त निर्वृत्ति</strong>—देखें [[ पर्याप्ति#1 | पर्याप्ति - 1]]।</li> | ||
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== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विजयार्ध पर्वत, पर स्थित सिद्धायतनों (जिनमंदिरों) की रक्षिका एक देवी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#363|हरिवंशपुराण - 5.363]] </span></p> | |||
<p id="2" class="HindiText">(2) द्रव्येंद्रिय का एक रूप । इसका दूसरा रूप उपकरण है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#85|हरिवंशपुराण - 18.85]] </span></p> | |||
<p id="3" class="HindiText">(3) एक आर्यिका । अरिंजयपुर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेना की पुत्री प्रीतिमती ने उसके पास दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#31|हरिवंशपुराण - 34.31]] </span></p> | |||
<p id="4" class="HindiText">(4) तीर्थंकर पद्मप्रभ की शिविका । <span class="GRef"> महापुराण 52.51 </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/2/17/175/4 निवर्त्यते इति निर्वृत्ति:। =रचना का नाम निर्वृत्ति है।
राजवार्तिक/2/10/1/130/7 कर्मणा या निर्वर्त्यते निष्पाद्यते सा निर्वृत्तिरित्युपदिश्यते। =नाम कर्म से जिसकी रचना हो उसे (इंद्रिय को) निर्वृत्ति कहते हैं।
- पर्याप्त अपर्याप्त निर्वृत्ति—देखें पर्याप्ति - 1।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत, पर स्थित सिद्धायतनों (जिनमंदिरों) की रक्षिका एक देवी । हरिवंशपुराण - 5.363
(2) द्रव्येंद्रिय का एक रूप । इसका दूसरा रूप उपकरण है । हरिवंशपुराण - 18.85
(3) एक आर्यिका । अरिंजयपुर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेना की पुत्री प्रीतिमती ने उसके पास दीक्षा ली थी । हरिवंशपुराण - 34.31
(4) तीर्थंकर पद्मप्रभ की शिविका । महापुराण 52.51