नील: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) छठवीं पृथिवी के प्रथम प्रस्तार संबंधी हिम इंद्रक बिल की पूर्व दिशा में स्थित महानरक। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.157 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) छठवीं पृथिवी के प्रथम प्रस्तार संबंधी हिम इंद्रक बिल की पूर्व दिशा में स्थित महानरक। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#157|हरिवंशपुराण - 4.157]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) शटकामुख नगर के अधिपति विद्याधर नीलवान् का पुत्र। यह नीलांजना का भाई था। इसके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम नीलकंठ था। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 23.1-7 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) शटकामुख नगर के अधिपति विद्याधर नीलवान् का पुत्र। यह नीलांजना का भाई था। इसके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम नीलकंठ था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_23#1|हरिवंशपुराण - 23.1-7]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) जंबूद्वीप का चौथा कुलाचल।<span class="GRef"> महापुराण 5.109, 36. 48, 63.193, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.157-158, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.15 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) जंबूद्वीप का चौथा कुलाचल।<span class="GRef"> महापुराण 5.109, 36. 48, 63.193, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_105#157|पद्मपुराण - 105.157-158]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#15|हरिवंशपुराण - 5.15]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) नील पर्वत। यह वैडूर्यमणिमय है। विदेहक्षेत्र के आगे स्थित है। इसके नौ कूट हैं। इनके नाम हैं― | <p id="4" class="HindiText">(4) नील पर्वत। यह वैडूर्यमणिमय है। विदेहक्षेत्र के आगे स्थित है। इसके नौ कूट हैं। इनके नाम हैं― | ||
1.सिद्धायतनकूट, 2.नीलकूट, 3.पूर्वविदेहकूट, 4.सीताकूट, 5.कीर्तिकूट, 6.नरकांतककूट, 7.अपरविदेहकूट, 8.रम्यककूट, और 9.अपदर्शनकूट। | 1.सिद्धायतनकूट, 2.नीलकूट, 3.पूर्वविदेहकूट, 4.सीताकूट, 5.कीर्तिकूट, 6.नरकांतककूट, 7.अपरविदेहकूट, 8.रम्यककूट, और 9.अपदर्शनकूट। | ||
इनकी ऊँचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन, बीच की चौड़ाई पंचहत्तर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है। <span class="GRef"> महापुराण 4.51-52 </span>। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.99-101 </span></p> | इनकी ऊँचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन, बीच की चौड़ाई पंचहत्तर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है। <span class="GRef"> महापुराण 4.51-52 </span>। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#99|हरिवंशपुराण - 5.99-101]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) एक वन यह तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ की दीक्षाभूमि थी। <span class="GRef"> महापुराण 67.41 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) एक वन यह तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ की दीक्षाभूमि थी। <span class="GRef"> महापुराण 67.41 </span></p> | ||
<p id="6">(6) राम का पक्षधर एक विद्याधर यह सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज और उसकी रानी हरिकांता का पुत्र तथा नल का भाई था। लंका-विजय के बाद राम ने इसे किष्किंध नगर का राजा बनाया था। अंत में इसने राज्य का परित्याग कर दीक्षा धारण कर ली थी। <span class="GRef"> महापुराण 68.621-622, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 9.13, 88. 40, 119.39-40 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) राम का पक्षधर एक विद्याधर यह सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज और उसकी रानी हरिकांता का पुत्र तथा नल का भाई था। लंका-विजय के बाद राम ने इसे किष्किंध नगर का राजा बनाया था। अंत में इसने राज्य का परित्याग कर दीक्षा धारण कर ली थी। <span class="GRef"> महापुराण 68.621-622, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#13|पद्मपुराण - 9.13]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#88|पद्मपुराण - 9.88]]. 40, 119.39-40 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/3/11/7-8/183/21 –नीलेन वर्णेन योगात् पर्वतो नील इति व्यपदिश्यते। संज्ञा चास्य वासुदेवस्य कृष्णव्यपदेशवत् । क्व पुनरसौ। विदेहरम्यकविनिवेशविभागी।8। =नील वर्ण होने के कारण इस पर्वत को नील कहते हैं। वासुदेव की कृष्ण संज्ञा की तरह यह संज्ञा है। यह विदेह और रम्यक क्षेत्र की सीमा पर स्थित है। विशेष देखें लोक - 3.4।
- नील पर्वत पर स्थित एक कूट तथा उसका रक्षकदेव–देखें लोक - 5.4.7|
- एक ग्रह–देखें ग्रह |
- भद्रशाल वन में स्थित एक दिग्गजेंद्र पर्वत–देखें लोक - 5.3.6|
- रुचक पर्वत के श्रीवृक्ष कूट पर रहने वाला एक दिग्गजेंद्र देव–देखें लोक - 5.13|
- उत्तरकुरु में स्थित 10 द्रहों में से एक–देखें लोक - 5.6.3|
- नील नामक एक लेश्या–देखें लेश्या |
- पद्म पुराण/अधिकार/श्लोक संख्या –सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज का पुत्र था। (9/13)। अंत में दीक्षित हो मोक्ष पधारे। (119/39)।
पुराणकोष से
(1) छठवीं पृथिवी के प्रथम प्रस्तार संबंधी हिम इंद्रक बिल की पूर्व दिशा में स्थित महानरक। हरिवंशपुराण - 4.157
(2) शटकामुख नगर के अधिपति विद्याधर नीलवान् का पुत्र। यह नीलांजना का भाई था। इसके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम नीलकंठ था। हरिवंशपुराण - 23.1-7
(3) जंबूद्वीप का चौथा कुलाचल। महापुराण 5.109, 36. 48, 63.193, पद्मपुराण - 105.157-158, हरिवंशपुराण - 5.15
(4) नील पर्वत। यह वैडूर्यमणिमय है। विदेहक्षेत्र के आगे स्थित है। इसके नौ कूट हैं। इनके नाम हैं― 1.सिद्धायतनकूट, 2.नीलकूट, 3.पूर्वविदेहकूट, 4.सीताकूट, 5.कीर्तिकूट, 6.नरकांतककूट, 7.अपरविदेहकूट, 8.रम्यककूट, और 9.अपदर्शनकूट। इनकी ऊँचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन, बीच की चौड़ाई पंचहत्तर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है। महापुराण 4.51-52 । हरिवंशपुराण - 5.99-101
(5) एक वन यह तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ की दीक्षाभूमि थी। महापुराण 67.41
(6) राम का पक्षधर एक विद्याधर यह सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज और उसकी रानी हरिकांता का पुत्र तथा नल का भाई था। लंका-विजय के बाद राम ने इसे किष्किंध नगर का राजा बनाया था। अंत में इसने राज्य का परित्याग कर दीक्षा धारण कर ली थी। महापुराण 68.621-622, पद्मपुराण - 9.13,पद्मपुराण - 9.88. 40, 119.39-40