नंदा: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) रुचकगिरि के दिक्नंदन कूट पर रहने वाली एक दिक्कुमारी देवी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.706 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) रुचकगिरि के दिक्नंदन कूट पर रहने वाली एक दिक्कुमारी देवी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#706|हरिवंशपुराण - 5.706]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) समवसरण के अशोकवन की एक वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.32 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) समवसरण के अशोकवन की एक वापी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#32|हरिवंशपुराण - 57.32]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) समवसरण की चारों दिशाओं में विद्यमान चार वापिकाओं में एक वापिका । इसमें स्नान करने वाले जीव अपना पूर्वभव जान लेते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57. 71-74 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) समवसरण की चारों दिशाओं में विद्यमान चार वापिकाओं में एक वापिका । इसमें स्नान करने वाले जीव अपना पूर्वभव जान लेते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#71|हरिवंशपुराण - 57.71-74]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) तीर्थंकर वृषभदेव की दूसरी रानी । भरतेश और उनकी बहिन ब्राह्मी इसी की कुक्षि से युगल रूप में जन्मे थे । इसने भरत के अतिरिक्त वृषभसेन आदि अठानवें पुत्रों को और जन्म दिया था । ये सभी पुत्र चरमशरीरी थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3.260, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.18-23 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) तीर्थंकर वृषभदेव की दूसरी रानी । भरतेश और उनकी बहिन ब्राह्मी इसी की कुक्षि से युगल रूप में जन्मे थे । इसने भरत के अतिरिक्त वृषभसेन आदि अठानवें पुत्रों को और जन्म दिया था । ये सभी पुत्र चरमशरीरी थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#260|पद्मपुराण -3. 260]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#18|हरिवंशपुराण - 9.18-23]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) भरतखंड के मध्यदेश की एक नदी । यमुना पार करके भरतेश की सेना यहाँ भी आयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 29.65 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) भरतखंड के मध्यदेश की एक नदी । यमुना पार करके भरतेश की सेना यहाँ भी आयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 29.65 </span></p> | ||
<p id="6">(6) नंदीश्वर द्वीप की पूर्व दिशा के अंजनगिरि की चार वापिकाओ में एक वापिका । यह सौधर्मेंद्र की | <p id="6" class="HindiText">(6) नंदीश्वर द्वीप की पूर्व दिशा के अंजनगिरि की चार वापिकाओ में एक वापिका । यह सौधर्मेंद्र की क्रीड़ा स्थली है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#658|हरिवंशपुराण - 5.658-659]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) तीर्थंकर अजितनाथ की रानी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.64.65 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) तीर्थंकर अजितनाथ की रानी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#64|पद्मपुराण - 5.64]].65 </span></p> | ||
<p id="8">(8) भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा विष्णु की रानी । यह तीर्थंकर श्रेयांसनाथ की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 57.17-18,22 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा विष्णु की रानी । यह तीर्थंकर श्रेयांसनाथ की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 57.17-18,22 </span></p> | ||
<p id="9">(9) पोदनपुर के राजा वसुषेण की प्रियतमा रानी । मलयदेश का राजा चंडशासन इसे हरकर अपने देश ले गया था । वसुषेण उसे वापस नहीं ला सका था । <span class="GRef"> महापुराण 60.50, 52-53 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) पोदनपुर के राजा वसुषेण की प्रियतमा रानी । मलयदेश का राजा चंडशासन इसे हरकर अपने देश ले गया था । वसुषेण उसे वापस नहीं ला सका था । <span class="GRef"> महापुराण 60.50, 52-53 </span></p> | ||
<p id="10">(10) हेमांगद देश में राजपुर नगर के सेठ गंधोत्कट की पत्नी । जीवंधरकुमार का पालन-पोषण इसी ने किया था । <span class="GRef"> महापुराण 75.246-249 </span></p> | <p id="10">(10) हेमांगद देश में राजपुर नगर के सेठ गंधोत्कट की पत्नी । जीवंधरकुमार का पालन-पोषण इसी ने किया था । <span class="GRef"> महापुराण 75.246-249 </span></p> | ||
<p id="11">(11) भद्रिलपुर के राजा मेघवाहन की रानी । <span class="GRef"> महापुराण 71. 304 </span></p> | <p id="11">(11) भद्रिलपुर के राजा मेघवाहन की रानी । <span class="GRef"> महापुराण 71. 304 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भरतक्षेत्र आर्यखंड की एक नदी।‒देखें मनुष्य - 4।
- नंदीश्वर द्वीप के पूर्वदिशा में स्थित एक वापी‒देखें लोक - 4.5।
- रुचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी‒देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) रुचकगिरि के दिक्नंदन कूट पर रहने वाली एक दिक्कुमारी देवी । हरिवंशपुराण - 5.706
(2) समवसरण के अशोकवन की एक वापी । हरिवंशपुराण - 57.32
(3) समवसरण की चारों दिशाओं में विद्यमान चार वापिकाओं में एक वापिका । इसमें स्नान करने वाले जीव अपना पूर्वभव जान लेते हैं । हरिवंशपुराण - 57.71-74
(4) तीर्थंकर वृषभदेव की दूसरी रानी । भरतेश और उनकी बहिन ब्राह्मी इसी की कुक्षि से युगल रूप में जन्मे थे । इसने भरत के अतिरिक्त वृषभसेन आदि अठानवें पुत्रों को और जन्म दिया था । ये सभी पुत्र चरमशरीरी थे । पद्मपुराण -3. 260, हरिवंशपुराण - 9.18-23
(5) भरतखंड के मध्यदेश की एक नदी । यमुना पार करके भरतेश की सेना यहाँ भी आयी थी । महापुराण 29.65
(6) नंदीश्वर द्वीप की पूर्व दिशा के अंजनगिरि की चार वापिकाओ में एक वापिका । यह सौधर्मेंद्र की क्रीड़ा स्थली है । हरिवंशपुराण - 5.658-659
(7) तीर्थंकर अजितनाथ की रानी । पद्मपुराण - 5.64.65
(8) भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा विष्णु की रानी । यह तीर्थंकर श्रेयांसनाथ की जननी थी । महापुराण 57.17-18,22
(9) पोदनपुर के राजा वसुषेण की प्रियतमा रानी । मलयदेश का राजा चंडशासन इसे हरकर अपने देश ले गया था । वसुषेण उसे वापस नहीं ला सका था । महापुराण 60.50, 52-53
(10) हेमांगद देश में राजपुर नगर के सेठ गंधोत्कट की पत्नी । जीवंधरकुमार का पालन-पोषण इसी ने किया था । महापुराण 75.246-249
(11) भद्रिलपुर के राजा मेघवाहन की रानी । महापुराण 71. 304