पद्मपुंगव: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> उत्सर्पिणी काल के दु:षमा नामक काल में होने वाले सोलह कुलकरों में पंद्रहवें कुलकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.466 </span><span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>के अनुसार ये चौदहवें और अंतिम कुलकर होंगे । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> उत्सर्पिणी काल के दु:षमा नामक काल में होने वाले सोलह कुलकरों में पंद्रहवें कुलकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.466 </span><span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>के अनुसार ये चौदहवें और अंतिम कुलकर होंगे । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> 60.553-557 </span> | ||
<p id="2">(2) अवसर्पिणी काल के चतुर्थ दु:षमा-सुषमा काल में उत्पन्न शलाकापुरुष और छठे तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 2.129,134, </span><span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>1.8, 22-32, <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.87, 101-105 </span>कौशांबी नगरी के इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री राजा धरण के यहाँ | <div class="HindiText"> <p class="HindiText">पद्मप्रभ― (1) उत्सर्पिणी काल के दुःषमा काल में होने वाले सोलह कुलकरों में बारहवें कुलकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.465 </span><span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>के अनुसार ये ग्यारहवें कुलकर होंगे । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> 60. 557</p> | ||
<p id="2" class="HindiText">(2) अवसर्पिणी काल के चतुर्थ दु:षमा-सुषमा काल में उत्पन्न शलाकापुरुष और छठे तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 2.129,134, </span><span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>1.8, 22-32, <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.87, 101-105 </span>कौशांबी नगरी के इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री राजा धरण के यहाँ उनकी रानी सुसीमा के माघ कृष्णा षष्ठी तिथि की प्रभात बेला में ये गर्भ में आये थे तथा कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन त्वष्ट्रयोग में इन्होंने जन्म लिया । तीस लाख पूर्व प्रमाण इनकी आयु थी और दो सौ पचास धनुष ऊंचा शरीर था । आयु का एक चौथाई भाग बीत जाने पर इन्हें एकछत्र राज्य प्राप्त हुआ था । सोलह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व की आयु शेष रहने पर, ये काम-भोगों से विरक्त हुए और निवृत्ति नामा शिविका पर आरूढ़ होकर मनोहर वन में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की अपराह्न बेला और चित्रा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हुए । दीक्षा लेते ही इन्हें मन:पर्ययज्ञान हो गया था । वर्धमान नगर के राजा सोमदत्त के यहाँ इनकी प्रथम पारणा हुई थी । ये छद्मस्थ अवस्था में छ: मास तक मौन रहे । इसके पश्चात् घातिया कर्मों का नाश करके इन्होंने चैत्र शुक्ल में पौर्णमासी की मध्याह्न बेला और चित्रा नक्षत्र में केवलज्ञान प्राप्त क्रिया । इनके वज्रचामर आदि एक सौ दस गणधर थे । तीन लाख तीस हजार मुनि और चार लाख बीस हजार आर्यिकाएँ इनके साथ थी । सम्मेदगिरि पर एक मास का योग धारण करके ये एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में स्थिर हुए और फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी के दिन अपराह्न बेला और चित्रा नक्षत्र में समुच्छिन्न क्रियाप्रतिपाति शुक्लध्यान से कर्म नष्ट करके इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । <span class="GRef"> महापुराण 52.18-68, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#42|पद्मपुराण - 20.42]], 61, 84, 113, 119 </span>इसके पूर्व ये धातकीखंड के पूर्व विदेह में वत्स देश की सुसीमा नगरी के अपराजित नामक राजा थे । ये राजा सोमंधर के पुत्र थे । आयु के अंत में समाधिमरण के द्वारा शरीर छोड़कर इन्होंने ग्रैवेयक के प्रीतिंकर विमान में अहमिंद्र पद पाया था । यहाँ से क्षत होकर ये इस नाम के छठे तीर्थंकर हुए । <span class="GRef"> महापुराण 52.2-3, 12-14, </span><span class="GRef"> महापुराण 20. 26-35, </span><span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> 60. 152</p> | |||
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उत्सर्पिणी काल के दु:षमा नामक काल में होने वाले सोलह कुलकरों में पंद्रहवें कुलकर । महापुराण 76.466 हरिवंशपुराण के अनुसार ये चौदहवें और अंतिम कुलकर होंगे । हरिवंशपुराण 60.553-557
पद्मप्रभ― (1) उत्सर्पिणी काल के दुःषमा काल में होने वाले सोलह कुलकरों में बारहवें कुलकर । महापुराण 76.465 हरिवंशपुराण के अनुसार ये ग्यारहवें कुलकर होंगे । हरिवंशपुराण 60. 557
(2) अवसर्पिणी काल के चतुर्थ दु:षमा-सुषमा काल में उत्पन्न शलाकापुरुष और छठे तीर्थंकर । महापुराण 2.129,134, हरिवंशपुराण 1.8, 22-32, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.87, 101-105 कौशांबी नगरी के इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री राजा धरण के यहाँ उनकी रानी सुसीमा के माघ कृष्णा षष्ठी तिथि की प्रभात बेला में ये गर्भ में आये थे तथा कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन त्वष्ट्रयोग में इन्होंने जन्म लिया । तीस लाख पूर्व प्रमाण इनकी आयु थी और दो सौ पचास धनुष ऊंचा शरीर था । आयु का एक चौथाई भाग बीत जाने पर इन्हें एकछत्र राज्य प्राप्त हुआ था । सोलह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व की आयु शेष रहने पर, ये काम-भोगों से विरक्त हुए और निवृत्ति नामा शिविका पर आरूढ़ होकर मनोहर वन में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की अपराह्न बेला और चित्रा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हुए । दीक्षा लेते ही इन्हें मन:पर्ययज्ञान हो गया था । वर्धमान नगर के राजा सोमदत्त के यहाँ इनकी प्रथम पारणा हुई थी । ये छद्मस्थ अवस्था में छ: मास तक मौन रहे । इसके पश्चात् घातिया कर्मों का नाश करके इन्होंने चैत्र शुक्ल में पौर्णमासी की मध्याह्न बेला और चित्रा नक्षत्र में केवलज्ञान प्राप्त क्रिया । इनके वज्रचामर आदि एक सौ दस गणधर थे । तीन लाख तीस हजार मुनि और चार लाख बीस हजार आर्यिकाएँ इनके साथ थी । सम्मेदगिरि पर एक मास का योग धारण करके ये एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में स्थिर हुए और फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी के दिन अपराह्न बेला और चित्रा नक्षत्र में समुच्छिन्न क्रियाप्रतिपाति शुक्लध्यान से कर्म नष्ट करके इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । महापुराण 52.18-68, पद्मपुराण - 20.42, 61, 84, 113, 119 इसके पूर्व ये धातकीखंड के पूर्व विदेह में वत्स देश की सुसीमा नगरी के अपराजित नामक राजा थे । ये राजा सोमंधर के पुत्र थे । आयु के अंत में समाधिमरण के द्वारा शरीर छोड़कर इन्होंने ग्रैवेयक के प्रीतिंकर विमान में अहमिंद्र पद पाया था । यहाँ से क्षत होकर ये इस नाम के छठे तीर्थंकर हुए । महापुराण 52.2-3, 12-14, महापुराण 20. 26-35, हरिवंशपुराण 60. 152