पर्यायसमास: Difference between revisions
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<p> श्रुतज्ञान के बीस भेदों में दूसरा भेद । श्रुतज्ञान का आवरण होने पर भी प्रकट रहने वाला पर्याय-श्रुतज्ञान जब ज्ञान के अनंतवें भाग के साथ मिल जाता है तब वह ज्ञान इस नाम से संबोधित किया जाता है । पर्याय-ज्ञान के ऊपर संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनंतगुणवृद्धि के क्रम से वृद्धि होते-होते जब अक्षर-ज्ञान की पूर्णता होती है तब पर्यायसमास का ज्ञान होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.12-13, 19-21 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> श्रुतज्ञान के बीस भेदों में दूसरा भेद । श्रुतज्ञान का आवरण होने पर भी प्रकट रहने वाला पर्याय-श्रुतज्ञान जब ज्ञान के अनंतवें भाग के साथ मिल जाता है, तब वह ज्ञान इस नाम से संबोधित किया जाता है । पर्याय-ज्ञान के ऊपर संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनंतगुणवृद्धि के क्रम से वृद्धि होते-होते जब अक्षर-ज्ञान की पूर्णता होती है तब पर्यायसमास का ज्ञान होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#12|हरिवंशपुराण - 10.12-13]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#19|हरिवंशपुराण - 10.19-21]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:12, 27 November 2023
श्रुतज्ञान के बीस भेदों में दूसरा भेद । श्रुतज्ञान का आवरण होने पर भी प्रकट रहने वाला पर्याय-श्रुतज्ञान जब ज्ञान के अनंतवें भाग के साथ मिल जाता है, तब वह ज्ञान इस नाम से संबोधित किया जाता है । पर्याय-ज्ञान के ऊपर संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनंतगुणवृद्धि के क्रम से वृद्धि होते-होते जब अक्षर-ज्ञान की पूर्णता होती है तब पर्यायसमास का ज्ञान होता है । हरिवंशपुराण - 10.12-13,हरिवंशपुराण - 10.19-21