पुनर्वसु: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) अरिष्टनगर का नृप । इसने तीर्थंकर शीतलनाथ को दीक्षोपरांत आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 56. 46-47 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) अरिष्टनगर का नृप । इसने तीर्थंकर शीतलनाथ को दीक्षोपरांत आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 56. 46-47 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक नक्षत्र । तीर्थंकर अभिनंदननाथ का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.40 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक नक्षत्र । तीर्थंकर अभिनंदननाथ का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#40|पद्मपुराण - 20.40]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) लक्ष्मण के पूर्वभव का नाम । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.207, 211 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) लक्ष्मण के पूर्वभव का नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#207|पद्मपुराण - 20.207]], 211 </span></p> | ||
<p id="4">(4) प्रतिष्ठपुर नगर का स्वामी और विदेहक्षेत्र में स्थित पुंडरीक देश के चक्रधर नगर के चक्री त्रिभुवनानंद का सामंत । इसने त्रिभुवनानंद की पुत्री अनंगशरा का अपहरण किया था । परिस्थितिवश उसे अनंगशरा को छोड़ना पड़ा । श्वापद अटवी में दु:खी होकर अनंगशरा ने व्रत लिये और सल्लेखना से मरण प्राप्त किया । उसे न पाकर पुनर्वसु ने द्रुमसेन मुनि से ही दीक्षा ली और अंत में निदानपूर्वक मरण करके तप के प्रभाव से स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर लक्ष्मण हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 64. 50-55, 93-95 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) प्रतिष्ठपुर नगर का स्वामी और विदेहक्षेत्र में स्थित पुंडरीक देश के चक्रधर नगर के चक्री त्रिभुवनानंद का सामंत । इसने त्रिभुवनानंद की पुत्री अनंगशरा का अपहरण किया था । परिस्थितिवश उसे अनंगशरा को छोड़ना पड़ा । श्वापद अटवी में दु:खी होकर अनंगशरा ने व्रत लिये और सल्लेखना से मरण प्राप्त किया । उसे न पाकर पुनर्वसु ने द्रुमसेन मुनि से ही दीक्षा ली और अंत में निदानपूर्वक मरण करके तप के प्रभाव से स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर लक्ष्मण हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_64#50|पद्मपुराण - 64.50-55]], 93-95 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
(1) अरिष्टनगर का नृप । इसने तीर्थंकर शीतलनाथ को दीक्षोपरांत आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 56. 46-47
(2) एक नक्षत्र । तीर्थंकर अभिनंदननाथ का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था । पद्मपुराण - 20.40
(3) लक्ष्मण के पूर्वभव का नाम । पद्मपुराण - 20.207, 211
(4) प्रतिष्ठपुर नगर का स्वामी और विदेहक्षेत्र में स्थित पुंडरीक देश के चक्रधर नगर के चक्री त्रिभुवनानंद का सामंत । इसने त्रिभुवनानंद की पुत्री अनंगशरा का अपहरण किया था । परिस्थितिवश उसे अनंगशरा को छोड़ना पड़ा । श्वापद अटवी में दु:खी होकर अनंगशरा ने व्रत लिये और सल्लेखना से मरण प्राप्त किया । उसे न पाकर पुनर्वसु ने द्रुमसेन मुनि से ही दीक्षा ली और अंत में निदानपूर्वक मरण करके तप के प्रभाव से स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर लक्ष्मण हुआ । पद्मपुराण - 64.50-55, 93-95