पुष्पक: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(5 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
आनत-प्राणत स्वर्ग का तृतीय पटल व इंद्रक। - देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]। | == सिद्धांतकोष से == | ||
<div class="HindiText"> आनत-प्राणत स्वर्ग का तृतीय पटल व इंद्रक। - देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]। | |||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ पुष्प | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ पुष्प | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
Line 12: | Line 13: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) आकाशगामी विमान । यह विमान स्वामी की इच्छानुसार गमनशील होता है । यह विमान रावण के मौसेरे भाई वैश्रवण के पास था । रावण ने वैश्रवण को जीतकर इसे प्राप्त कर लिया था । इसी में बैठकर रावण ने सीता का हरण किया था और राम से युद्ध करने के लिए इसी विमान पर | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) आकाशगामी विमान । यह विमान स्वामी की इच्छानुसार गमनशील होता है । यह विमान रावण के मौसेरे भाई वैश्रवण के पास था । रावण ने वैश्रवण को जीतकर इसे प्राप्त कर लिया था । इसी में बैठकर रावण ने सीता का हरण किया था और राम से युद्ध करने के लिए इसी विमान पर आरूढ़ होकर लंका से उसने निर्गमन किया था । रावण-वध के पश्चात् राम-लक्ष्मण और सीता आदि इसी यान से अयोध्या आये थे । <span class="GRef"> महापुराण 68.193-194, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#126|पद्मपुराण - 7.126-128]], 8.253-258, 416, 12.370, 44.90, 57.64-65, 82.1 </span></p> | ||
<p id="2">(2) आनत-प्राणत स्वर्गों का तृतीय पटल एवं इंद्रक विमान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.51 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) आनत-प्राणत स्वर्गों का तृतीय पटल एवं इंद्रक विमान । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#51|हरिवंशपुराण - 6.51]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) राजपुर का एक वन । यह तीर्थंकर पुष्पदंत की दीक्षाभूमि था । <span class="GRef"> महापुराण 55.46-47, 75.469 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) राजपुर का एक वन । यह तीर्थंकर पुष्पदंत की दीक्षाभूमि था । <span class="GRef"> महापुराण 55.46-47, 75.469 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 25: | Line 26: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
आनत-प्राणत स्वर्ग का तृतीय पटल व इंद्रक। - देखें स्वर्ग - 5.3।
पुराणकोष से
(1) आकाशगामी विमान । यह विमान स्वामी की इच्छानुसार गमनशील होता है । यह विमान रावण के मौसेरे भाई वैश्रवण के पास था । रावण ने वैश्रवण को जीतकर इसे प्राप्त कर लिया था । इसी में बैठकर रावण ने सीता का हरण किया था और राम से युद्ध करने के लिए इसी विमान पर आरूढ़ होकर लंका से उसने निर्गमन किया था । रावण-वध के पश्चात् राम-लक्ष्मण और सीता आदि इसी यान से अयोध्या आये थे । महापुराण 68.193-194, पद्मपुराण - 7.126-128, 8.253-258, 416, 12.370, 44.90, 57.64-65, 82.1
(2) आनत-प्राणत स्वर्गों का तृतीय पटल एवं इंद्रक विमान । हरिवंशपुराण - 6.51
(3) राजपुर का एक वन । यह तीर्थंकर पुष्पदंत की दीक्षाभूमि था । महापुराण 55.46-47, 75.469