पूर्व-विदेह: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) विदेहक्षेत्र का एक भाग । यह सुमेरु पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित है । सीता नदी इसी क्षेत्र के मध्य बहती है । यह सीमंधर स्वामी की निवासभूमि है यहाँ तीर्थंकर चतुर्विध संघ तथा गणधरों सहित धर्म-प्रवर्तन के लिए सदा विहार करते हैं । यहाँ अहिंसा धर्म नित्य प्रवर्तमान रहता है । ज्ञानी अंग और पूर्वगत श्रुत का अध्ययन करते हैं । यहाँ मनुष्यों का शरीर पांच सौ धनुष ऊँचा और उनकी आयु एक पूर्वकोटि वर्ष की होती है । यहाँ के मनुष्य मरण कर नियम से स्वर्ग और मोक्ष ही प्राप्त करते हैं । नारद का यहाँ गमनागमन रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.79, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.3-14 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विदेहक्षेत्र का एक भाग । यह सुमेरु पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित है । सीता नदी इसी क्षेत्र के मध्य बहती है । यह सीमंधर स्वामी की निवासभूमि है यहाँ तीर्थंकर चतुर्विध संघ तथा गणधरों सहित धर्म-प्रवर्तन के लिए सदा विहार करते हैं । यहाँ अहिंसा धर्म नित्य प्रवर्तमान रहता है । ज्ञानी अंग और पूर्वगत श्रुत का अध्ययन करते हैं । यहाँ मनुष्यों का शरीर पांच सौ धनुष ऊँचा और उनकी आयु एक पूर्वकोटि वर्ष की होती है । यहाँ के मनुष्य मरण कर नियम से स्वर्ग और मोक्ष ही प्राप्त करते हैं । नारद का यहाँ गमनागमन रहता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_43#79|हरिवंशपुराण - 43.79]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.3-14 </span></p> | ||
<p id="2">(2) नील पर्वत का एक कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.99 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) नील पर्वत का एक कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#99|हरिवंशपुराण - 5.99]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
(1) विदेहक्षेत्र का एक भाग । यह सुमेरु पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित है । सीता नदी इसी क्षेत्र के मध्य बहती है । यह सीमंधर स्वामी की निवासभूमि है यहाँ तीर्थंकर चतुर्विध संघ तथा गणधरों सहित धर्म-प्रवर्तन के लिए सदा विहार करते हैं । यहाँ अहिंसा धर्म नित्य प्रवर्तमान रहता है । ज्ञानी अंग और पूर्वगत श्रुत का अध्ययन करते हैं । यहाँ मनुष्यों का शरीर पांच सौ धनुष ऊँचा और उनकी आयु एक पूर्वकोटि वर्ष की होती है । यहाँ के मनुष्य मरण कर नियम से स्वर्ग और मोक्ष ही प्राप्त करते हैं । नारद का यहाँ गमनागमन रहता है । हरिवंशपुराण - 43.79, वीरवर्द्धमान चरित्र 2.3-14
(2) नील पर्वत का एक कूट । हरिवंशपुराण - 5.99