भव्यत्व: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> जीव का वह स्वभाव जिससे सम्यक्त्व प्रकट होता है । दूसरे गुणस्थान से लेकर अंतिम गुणस्थान तक के तेरह गुणस्थानों में नियम से जीवों के भव्यपना ही रहता है । प्रथम गुणस्थान में भव्यपना तथा अभव्यपना दोनों होते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.100, 104, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.64 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जीव का वह स्वभाव जिससे सम्यक्त्व प्रकट होता है । दूसरे गुणस्थान से लेकर अंतिम गुणस्थान तक के तेरह गुणस्थानों में नियम से जीवों के भव्यपना ही रहता है । प्रथम गुणस्थान में भव्यपना तथा अभव्यपना दोनों होते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#100|हरिवंशपुराण - 3.100]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#104|हरिवंशपुराण - 3.104]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.64 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
जीव का वह स्वभाव जिससे सम्यक्त्व प्रकट होता है । दूसरे गुणस्थान से लेकर अंतिम गुणस्थान तक के तेरह गुणस्थानों में नियम से जीवों के भव्यपना ही रहता है । प्रथम गुणस्थान में भव्यपना तथा अभव्यपना दोनों होते हैं । हरिवंशपुराण - 3.100,हरिवंशपुराण - 3.104, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.64