भावसत्य: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> दस प्रकार के सत्यों में एक सत्य । छद्मस्थ को द्रव्यों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता है । अत: जो पदार्थ इंद्रियगोचर न हो उसके संबंध में केवली द्वारा कथित वचनों को प्रमाण मानना भावसत्य है । प्रासुक और अप्रासुक द्रव्यों का निर्णय इसी प्रकार किया जाता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 106 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> दस प्रकार के सत्यों में एक सत्य । छद्मस्थ को द्रव्यों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता है । अत: जो पदार्थ इंद्रियगोचर न हो उसके संबंध में केवली द्वारा कथित वचनों को प्रमाण मानना भावसत्य है । प्रासुक और अप्रासुक द्रव्यों का निर्णय इसी प्रकार किया जाता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#106|हरिवंशपुराण - 10.106]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: भ]] | [[Category: भ]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
दस प्रकार के सत्यों में एक सत्य । छद्मस्थ को द्रव्यों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता है । अत: जो पदार्थ इंद्रियगोचर न हो उसके संबंध में केवली द्वारा कथित वचनों को प्रमाण मानना भावसत्य है । प्रासुक और अप्रासुक द्रव्यों का निर्णय इसी प्रकार किया जाता है । हरिवंशपुराण - 10.106