मृगया-विनोद: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> मनोरंजन का साधन-शिकार । यह हेय और पाप का कारण है । मृग के शिकारी पहले गीत गाकर हरिण को लुभाते हैं और इसके पश्चात् मार डालते हैं । विषय भी शिकारी के समान है । वे मनुष्य को पहले विश्वास दिलाते हैं और इसके पश्चात् उनके प्राणों को हर लेते हैं । अत: विषय भी त्याज्य है । <span class="GRef"> महापुराण 5.128, 11.202 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मनोरंजन का साधन-शिकार । यह हेय और पाप का कारण है । मृग के शिकारी पहले गीत गाकर हरिण को लुभाते हैं और इसके पश्चात् मार डालते हैं । विषय भी शिकारी के समान है । वे मनुष्य को पहले विश्वास दिलाते हैं और इसके पश्चात् उनके प्राणों को हर लेते हैं । अत: विषय भी त्याज्य है । <span class="GRef"> महापुराण 5.128, 11.202 </span></p> | ||
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मनोरंजन का साधन-शिकार । यह हेय और पाप का कारण है । मृग के शिकारी पहले गीत गाकर हरिण को लुभाते हैं और इसके पश्चात् मार डालते हैं । विषय भी शिकारी के समान है । वे मनुष्य को पहले विश्वास दिलाते हैं और इसके पश्चात् उनके प्राणों को हर लेते हैं । अत: विषय भी त्याज्य है । महापुराण 5.128, 11.202