मृगया-विनोद
From जैनकोष
मनोरंजन का साधन-शिकार । यह हेय और पाप का कारण है । मृग के शिकारी पहले गीत गाकर हरिण को लुभाते हैं और इसके पश्चात् मार डालते हैं । विषय भी शिकारी के समान है । वे मनुष्य को पहले विश्वास दिलाते हैं और इसके पश्चात् उनके प्राणों को हर लेते हैं । अत: विषय भी त्याज्य है । महापुराण 5.128, 11.202