विद्युद्वेगा: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) विद्याधर विद्युद्वेग की रानी । <span class="GRef"> महापुराण 71.419-420 </span>देखें [[ विद्युद्वेग#1 | विद्युद्वेग - 1]]</p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) विद्याधर विद्युद्वेग की रानी । <span class="GRef"> महापुराण 71.419-420 </span> देखें [[ विद्युद्वेग#1 | विद्युद्वेग - 1]]</p><br> | ||
<p id="2">(2) एक विद्याधरी । विद्याधर अशनिवेग ने इसे कुमार श्रीपाल को मारने भेजा था । यह श्रीपाल को देखकर कामासक्त हो गयी थी । श्रीपाल को अपने घर ले जाने का भी इसने प्रयत्न किया किंतु सफल नहीं हुई । इसकी सखी अनंगपताका ने इसका अभिप्राय कुमार के समक्ष प्रकट किया । कुमार ने माता-पिता द्वारा दी गयी कन्या के ग्रहण करने को अपनी प्रतिज्ञा बताकर अपनी असमर्थता प्रकट की । कुमार के इस उत्तर से यह कुमार को अपने मकान की छत पर | |||
<p id="3">(3) ब्रह्म स्वर्ग के इंद्र विद्युन्माली की चार देवियों में तीसरी देवी । <span class="GRef"> महापुराण 75.32-33 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक विद्याधरी । विद्याधर अशनिवेग ने इसे कुमार श्रीपाल को मारने भेजा था । यह श्रीपाल को देखकर कामासक्त हो गयी थी । श्रीपाल को अपने घर ले जाने का भी इसने प्रयत्न किया किंतु सफल नहीं हुई । इसकी सखी अनंगपताका ने इसका अभिप्राय कुमार के समक्ष प्रकट किया । कुमार ने माता-पिता द्वारा दी गयी कन्या के ग्रहण करने को अपनी प्रतिज्ञा बताकर अपनी असमर्थता प्रकट की । कुमार के इस उत्तर से यह कुमार को अपने मकान की छत पर छोड़कर और बंद करके माता-पिता को लेने गयी थी, इधर लाल कंबल ओढ़कर सोये हुए श्रीपाल को मांस का पिंड समझकर भेरुंड पक्षी उठा ले गया और यह विवश होकर निराश हो गयी । <span class="GRef"> महापुराण 47.27-44, </span>देखें [[ अशनिवेग ]]</p><br> | ||
<p id="3" class="HindiText">(3) ब्रह्म स्वर्ग के इंद्र विद्युन्माली की चार देवियों में तीसरी देवी । <span class="GRef"> महापुराण 75.32-33 </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
(1) विद्याधर विद्युद्वेग की रानी । महापुराण 71.419-420 देखें विद्युद्वेग - 1
(2) एक विद्याधरी । विद्याधर अशनिवेग ने इसे कुमार श्रीपाल को मारने भेजा था । यह श्रीपाल को देखकर कामासक्त हो गयी थी । श्रीपाल को अपने घर ले जाने का भी इसने प्रयत्न किया किंतु सफल नहीं हुई । इसकी सखी अनंगपताका ने इसका अभिप्राय कुमार के समक्ष प्रकट किया । कुमार ने माता-पिता द्वारा दी गयी कन्या के ग्रहण करने को अपनी प्रतिज्ञा बताकर अपनी असमर्थता प्रकट की । कुमार के इस उत्तर से यह कुमार को अपने मकान की छत पर छोड़कर और बंद करके माता-पिता को लेने गयी थी, इधर लाल कंबल ओढ़कर सोये हुए श्रीपाल को मांस का पिंड समझकर भेरुंड पक्षी उठा ले गया और यह विवश होकर निराश हो गयी । महापुराण 47.27-44, देखें अशनिवेग
(3) ब्रह्म स्वर्ग के इंद्र विद्युन्माली की चार देवियों में तीसरी देवी । महापुराण 75.32-33