शब्दनय: Difference between revisions
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<p> सात नयों में पांचवां नय । यह नय लिंग, साधन (कारक), संख्या (वचन), काल और उपग्रह पद के दोषों को दूर करता है । यह व्याकरण के नियमों के आधीन होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.41, 47 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सात नयों में पांचवां नय । यह नय लिंग, साधन (कारक), संख्या (वचन), काल और उपग्रह पद के दोषों को दूर करता है । यह व्याकरण के नियमों के आधीन होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#41|हरिवंशपुराण - 58.41]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#47|हरिवंशपुराण - 58.47]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सात नयों में पांचवां नय । यह नय लिंग, साधन (कारक), संख्या (वचन), काल और उपग्रह पद के दोषों को दूर करता है । यह व्याकरण के नियमों के आधीन होता है । हरिवंशपुराण - 58.41,हरिवंशपुराण - 58.47