शब्दनय
From जैनकोष
सात नयों में पांचवां नय । यह नय लिंग, साधन (कारक), संख्या (वचन), काल और उपग्रह पद के दोषों को दूर करता है । यह व्याकरण के नियमों के आधीन होता है । हरिवंशपुराण - 58.41,हरिवंशपुराण - 58.47
सात नयों में पांचवां नय । यह नय लिंग, साधन (कारक), संख्या (वचन), काल और उपग्रह पद के दोषों को दूर करता है । यह व्याकरण के नियमों के आधीन होता है । हरिवंशपुराण - 58.41,हरिवंशपुराण - 58.47