साम: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(5 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> राजाओं की प्रयोजन सिद्धि के चार कारणों-साम, दान, | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> राजाओं की प्रयोजन सिद्धि के चार कारणों-साम, दान, दंड और भेद, में प्रथम कारण-प्रिय तथा हितकारी वचनों द्वारा विरोधी को अपना बनाना । <span class="GRef"> महापुराण 68.62-63, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_50#18|हरिवंशपुराण - 50.18]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ सापेक्ष मात्रा | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ सामंतवर्द्धन | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
राजाओं की प्रयोजन सिद्धि के चार कारणों-साम, दान, दंड और भेद, में प्रथम कारण-प्रिय तथा हितकारी वचनों द्वारा विरोधी को अपना बनाना । महापुराण 68.62-63, हरिवंशपुराण - 50.18