सुग्रीव: Difference between revisions
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<p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र की काकंदीपुरी के राजा एवं तीर्थंकर पुष्पदंत के पिता । <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span>55. 23-24, 27-28, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.45 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र की काकंदीपुरी के राजा एवं तीर्थंकर पुष्पदंत के पिता । <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span>55. 23-24, 27-28, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#45|पद्मपुराण - 20.45]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) किष्किंध नगर के राजा वानरवंशी सूर्यरज और रानी इंदुमालिनी का कनिष्ठ पुत्र और बाली का भाई । श्रीप्रभा इसकी बहिन थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>के अनुसार यह विजयार्ध पर्वत के किलकिल नगर के राजा विद्याधर वलींद्र और रानी प्रियंगुसुंदरी का पुत्र था । इसका विवाह ज्योतिपुर के राजा अग्निशिख और रानी ह्री देवा की पुत्री सुतारा से हुआ था । इसके अंग और अंगद दो पुत्र और तेरह पुत्रियाँ थी । साहसगति नामक एक दुष्ट विद्याधर इसका रूप धारण कर इसकी पत्नी सुतारा के पास आने-जाने लगा था । इसके इस संकट को राम ने दूर किया । उन्होंने उससे युद्ध किया और उसे मार डाला था । लंका में इंद्रजित न इसके साथ मायामय युद्ध किया था । जिसमें नागपाश से यह बांध लिया गया था । अंत में यह राम के द्वारा मुक्त हुआ । इसके पश्चात् इसने निर्ग्रंथ दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>68.271-273, <span class="GRef"> पद्मपुराण 8.487, 9.1, 10-12, 10.2-12, 47.53, 124-126, 137-142, 60.108, 61.10, 119.39 </span>(4) राक्षसवंश के राजा संपरिकीर्ति का पुत्र और हरिग्रीव का पिता । यह पुत्र को राज्य सौंपकर उग्र तपश्चरण करते हुए देव हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.387-390 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) किष्किंध नगर के राजा वानरवंशी सूर्यरज और रानी इंदुमालिनी का कनिष्ठ पुत्र और बाली का भाई । श्रीप्रभा इसकी बहिन थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>के अनुसार यह विजयार्ध पर्वत के किलकिल नगर के राजा विद्याधर वलींद्र और रानी प्रियंगुसुंदरी का पुत्र था । इसका विवाह ज्योतिपुर के राजा अग्निशिख और रानी ह्री देवा की पुत्री सुतारा से हुआ था । इसके अंग और अंगद दो पुत्र और तेरह पुत्रियाँ थी । साहसगति नामक एक दुष्ट विद्याधर इसका रूप धारण कर इसकी पत्नी सुतारा के पास आने-जाने लगा था । इसके इस संकट को राम ने दूर किया । उन्होंने उससे युद्ध किया और उसे मार डाला था । लंका में इंद्रजित न इसके साथ मायामय युद्ध किया था । जिसमें नागपाश से यह बांध लिया गया था । अंत में यह राम के द्वारा मुक्त हुआ । इसके पश्चात् इसने निर्ग्रंथ दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>68.271-273, <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_8#487|पद्मपुराण -8. 487]], 9.1, 10-12, 10.2-12, 47.53, 124-126, 137-142, 60.108, 61.10, 119.39 </span>(4) राक्षसवंश के राजा संपरिकीर्ति का पुत्र और हरिग्रीव का पिता । यह पुत्र को राज्य सौंपकर उग्र तपश्चरण करते हुए देव हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#387|पद्मपुराण - 5.387-390]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
( पद्मपुराण/ सर्ग/श्लोक.
..किष्किंध पुर के राजा सूर्यरज का पुत्र था तथा बाली का छोटा भाई था। (9/10) आयु के अंत में दीक्षित हो गया। (119/39)।
पुराणकोष से
(1) विजयखेट नगर का एक क्षत्रिय गंधर्वाचार्य । इसकी सोमा और विजयसेना दो पुत्रियाँ थी । इसने अपनी इन पुत्रियों का विवाह वसुदेव से किया था । हरिवंशपुराण - 19.53-55,हरिवंशपुराण - 19.58
(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र की काकंदीपुरी के राजा एवं तीर्थंकर पुष्पदंत के पिता । महापुराण 55. 23-24, 27-28, पद्मपुराण - 20.45
(3) किष्किंध नगर के राजा वानरवंशी सूर्यरज और रानी इंदुमालिनी का कनिष्ठ पुत्र और बाली का भाई । श्रीप्रभा इसकी बहिन थी । महापुराण के अनुसार यह विजयार्ध पर्वत के किलकिल नगर के राजा विद्याधर वलींद्र और रानी प्रियंगुसुंदरी का पुत्र था । इसका विवाह ज्योतिपुर के राजा अग्निशिख और रानी ह्री देवा की पुत्री सुतारा से हुआ था । इसके अंग और अंगद दो पुत्र और तेरह पुत्रियाँ थी । साहसगति नामक एक दुष्ट विद्याधर इसका रूप धारण कर इसकी पत्नी सुतारा के पास आने-जाने लगा था । इसके इस संकट को राम ने दूर किया । उन्होंने उससे युद्ध किया और उसे मार डाला था । लंका में इंद्रजित न इसके साथ मायामय युद्ध किया था । जिसमें नागपाश से यह बांध लिया गया था । अंत में यह राम के द्वारा मुक्त हुआ । इसके पश्चात् इसने निर्ग्रंथ दीक्षा ले ली थी । महापुराण 68.271-273, पद्मपुराण -8. 487, 9.1, 10-12, 10.2-12, 47.53, 124-126, 137-142, 60.108, 61.10, 119.39 (4) राक्षसवंश के राजा संपरिकीर्ति का पुत्र और हरिग्रीव का पिता । यह पुत्र को राज्य सौंपकर उग्र तपश्चरण करते हुए देव हुआ था । पद्मपुराण - 5.387-390