सम्यक मिथ्यात्व गुणस्थान: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
देखें [[ | <p><span class="GRef">पंचसंग्रह प्राकृत/1/10,169</span> <p class=" PrakritText ">दहिगुडमिव वामिस्सं पिहुभावं णेव कारिदुं सक्कं। एवं मिस्सयभावो सम्मामिच्छो त्ति णायव्वो।10। सद्दहणासद्दहणं जस्स य जीवेसु होइ तच्चेसु। विरयाविरएण समो सम्मामिच्छो त्ति णायव्वो। 169।</p> <p class="HindiText">= 1. जिस प्रकार अच्छी तरह मिला हुआ दही और गुड़, पृथक् पृथक् नहीं किया जा सकता इसी प्रकार सम्यक्त्व व मिथ्यात्व से मिश्रित भाव को '''सम्यग्मिथ्यात्व''' जानना चाहिए।10। <span class="GRef">( धवला 1/1, 12/ गाथा 109/170)</span>; <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/22/47 )</span> 2. जिसके उदय से जीवों के तत्त्वों में श्रद्धान और अश्रद्धान युगपत् प्रगट हो है, उसे विरताविरत के समान '''सम्यग्मिथ्यात्व''' जानना चाहिए।169। <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/655/1102 )</span>।</p> | ||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ मिश्र_गुणस्थान#1.1 | मिश्र_गुणस्थान 1.1]]</p>। | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 10: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 10:17, 20 February 2024
पंचसंग्रह प्राकृत/1/10,169
दहिगुडमिव वामिस्सं पिहुभावं णेव कारिदुं सक्कं। एवं मिस्सयभावो सम्मामिच्छो त्ति णायव्वो।10। सद्दहणासद्दहणं जस्स य जीवेसु होइ तच्चेसु। विरयाविरएण समो सम्मामिच्छो त्ति णायव्वो। 169।
= 1. जिस प्रकार अच्छी तरह मिला हुआ दही और गुड़, पृथक् पृथक् नहीं किया जा सकता इसी प्रकार सम्यक्त्व व मिथ्यात्व से मिश्रित भाव को सम्यग्मिथ्यात्व जानना चाहिए।10। ( धवला 1/1, 12/ गाथा 109/170); ( गोम्मटसार जीवकांड/22/47 ) 2. जिसके उदय से जीवों के तत्त्वों में श्रद्धान और अश्रद्धान युगपत् प्रगट हो है, उसे विरताविरत के समान सम्यग्मिथ्यात्व जानना चाहिए।169। ( गोम्मटसार जीवकांड/655/1102 )।
अधिक जानकारी के लिये देखें मिश्र_गुणस्थान 1.1
।